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आचार्य महावीर प्रसाद दिवेदी – जीवन परिचय

जन्म – 5 मई 1864 ई०
जन्म स्थान – दौलतपुर (रायबरेली)
पिता – राम सहाय दिवेदी
मृत्यु – 21 दिसम्बर 1938 ई०

चार्य महावीर प्रसाद दिवेदी का जन्म 5 मई 1864 ई० को रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में हुआ, विद्वानों का मत है कि इनके पिता को महावीर का इष्ट था अत: इस कारण से इनके पिता ने इनका नाम “महावीर सहाय” रखा ! इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के प्राथमिक पाठशाला में हुई ! किन्तु इनके पाठशाला के प्रधानाध्यापक के भूलवश इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया गया, प्रधानाध्यापक की यह भूल हिन्दी साहित्य के जगत में एक बड़ी हस्ती के रूप में उल्लेखित हुई !

मात्र तेरह वर्ष की अवस्था में इन्होने अंग्रेजी पढ़ने के लिए रायबरेली जिले के जिला स्कूल में अपना दाखिला लिया, किन्तु वैकल्पिक विषय के रूप में इन्हे संस्कृत के जगह फारसी पढ़ना पड़ा यहाँ पर एक वर्ष तक अध्ययन करने के उपरांत इन्होने उन्नाव जिले के रंजित पुरवा स्कूल में और कुछ दिनों तक फतेहपुर में पढ़ने के पश्चात् ये अपने पिता जी के पास मुंबई चले गये ! मुंबई में इन्होने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषा का अभ्यास किये !

इनकी साहित्य के प्रति प्रेम कभी कम नहीं हुआ किन्तु जीविकोपार्जन के लिए इन्होने रेलवे में नौकरी कर ली और रेलवे में विभिन्न प्रकार के पदों को सुशोभित करते हुए झाँसी जिले के “जिला यातायात अधीक्षक” के कार्यालय में मुख्य लिपिक के पद पर आसिन हुए !

लेकिन अपने उच्चधिकारियो के व्यवहार से खिन्न हो कर अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया ! इतने अधिक नीरस वातावरण में रहने के उपरांत भी आप ने साहित्य रचना में किसी भी प्रकार की कमी नहीं की और अपनी इसी निष्ठा के कारण हिन्दी साहित्य सम्मेलन में “साहित्य वाचस्पति” एवं नगरी प्रचारिणी सभा ने “आचार्य” की उपाधि से सम्मानित किया ! सन 1903 ई० में आपने “सरस्वती पत्रिका” का संपादन स्वीकार किया ! संपादन के इस कार्य को आपने बखूबी 1920 ई० तक निभाया और आप सरस्वती पत्रिका से अलग हो गये ! फिर जीवन के अन्तिम अठ्ठारह वर्ष बहुत ही नीरस वातावरण में अपने गाँव में व्यतित किया ! 21 दिसम्बर सन 1938 ई० को रायबरेली में हिंदी साहित्य का यह यशस्वी लेखक परमात्मा में विलीन हो गया !

साहित्यिक परिचय ––

दिवेदी जी ने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया ! इन्होंने मूल्यांकन की तत्कालीन परिस्थितियों में बहुत ही बड़ा सुधार किया और उस समय के लेखनी में जो अभाव था उसे दूर किया तथा भाषा के स्वरुप संगठन, वाक्य-विन्यास, विराम-चिन्हों, के प्रयोग तथा व्याकरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया ! लेखको की अशुद्धियों को रेखांकित किया ! स्वयं लिखकर तथा दूसरों से लिखवाकर इन्होंने हिन्दी गद्य को पुष्ट और सहज रूप से तैयार किया जिससे हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है !

चनायें ––

इनकी रचनाओं में सर्वाधिक रूप से निबन्ध लेखन तथा कई प्रकार के ग्रंथों की रचनाएँ मिलती है, इन्होने संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं में भी बहुत सी ग्रंथो का अनुवाद किया है ! इनकी रचनात्मक शैली में परिचयात्मक शैली, आलोचनात्मक शैली, गवेष्णात्मक शैली तथा आत्म-कथानात्मक शैली का प्रयोग किया है ! “महाकवि माघ का प्रभात वर्णन” इनकी सबसे प्रशिद्ध रचना है !

मौलिक ग्रन्थ ––

“अद्भुत आलाप”, “विचार-विमर्श”, “संकलन”, “साहित्य सीकर”, “कालिदास की निरंकुशता”, “रसज्ञ-रंजन”, “कालिदास और उनकी कविता”, “हिंदी भाषा की उत्पत्ति”, अतीत स्मृति आदि !

नुवादित ग्रन्थ ––

“रघुवंश”, “हिन्दी महाभारत”, “कुमार सम्भव”, “किरांतार्जुनिय”

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