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काका कालेलकर – जीवन परिचय

Kaka Kalelkar Biography//Kaka Kalelkar Jeevan Parichay                              

जन्म – 1885 ई०

जन्म स्थान – सतारा (महाराष्ट्र)

पिता- नीलकंठ

मृत्यु – 21 अगस्त 1989

मराठा साहित्य में अपनी अलग छवि बनाने वाले साहित्यकार काका साहेब कालेलकर का जन्म 1885 ई० में महाराष्ट्र राज्य के सतारा में हुआ , इनके पिता एक मध्यमवर्गीय किसान थे  जो कृषि के माध्यम से परिवार का भरण पोषण करते थे , काका साहेब बाल्यकाल से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे !

मराठा इनकी मातृभाषा थी, किन्तु  मराठी के साथ- साथ इन्होनें संस्कृत, हिन्दी, अग्रेजी, गुजराती और बंगला भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था, ये एक कुशल अध्यापक , राष्ट्रभक्त एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, राष्ट्र भाषा को बढावा देने में जिन महापुरुषों और राजनेताओं का नाम आता है उनमे काका साहेब कालेलकार का नाम भी आता है राष्ट्र भाषा के प्रचार –प्रसार में इन्होनें अपने आन्दोलन को गति उस समय दिया जब ये महात्मा गाँधी के संपर्क में आये, अपने इस प्रचार –प्रसार को विशेष रूप से दक्षिण भारत एवं गुजरात राज्य में काफी तीव्र गति से चलाया ! काका साहेब एक कुशल अध्यापक के रूप में भी जाने जाते है इन्होनें शांति निकेतन में अध्यापक, साबरमती आश्रम में प्रधानाध्यापक और बडौदा में राष्ट्रीय शाला के आचार्य पद पर अपनी सेवाएं प्रदान किये, एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने के कारण काका साहेब कालेलकर को कई बार जेल जाना पडा और हमेशा राष्ट्र भाषा एवं समाज के लिए लड़ते रहे 1948 ई० में गाँधी जी की मृत्यु के पश्चात इनकी स्मृति में निर्मित “गाँधी संग्रहालय”  के प्रथम संचालक  पद पर अपना योगदान दिया, संविधान निर्माण में जो सभा बनायी गयी थी ये उसके भी सदस्य थे सन 1952 से 1957 ई० तक काका साहब राज्यसभा के सदस्य रहें, राष्ट्र के प्रति होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में बढ़-चढ़ कर रहने के कारण एवं अध्यापन के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने की वजह से ये कई आयोगों के अध्यक्ष पद पर आसीन हुये ! भारत सरकार ने इन्हें “पद्मभूषण”  राष्ट्र भाषा प्रचार समिति ने “गाँधी पुरस्कार” से अलंकृत किया, राष्ट्र भाषा के लिए विभिन्न प्रचार समितियों को बढ़ावा देने वाला यह साहित्यकार 21 अगस्त 1981 ई० को परलोक सिधार गया !

साहित्यिक परिचय   –

हिन्दी साहित्य में कालेलकर जी ने अनेक रचनाओं का सृजन किया इनकी मातृभाषा मराठी होने के बावजूद भी ये हिन्दी के प्रचार-प्रसार में जो रूचि दिखाते थे वह हिन्दी साहित्य के लोगों के लिए अनुकरणीय है इनकी प्रत्येक रचना पर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं एवं साहित्यकारों की प्रभावी व्यक्तित्व परिलक्षित होती है ! इन सबके साथ ही इन्होनें तत्कालीन समस्याओं पर भी कई सशक्त रचनाओं का सृजन किया है !

रचनायें  –

निबन्ध –

       “सर्वोदय”, “जीवन साहित्य”, “जीवन काव्य”

 यात्रा वृत्तान्त –

          “हिमालय प्रवास यात्रा”, “उस पार के पड़ोसी”, “लोक माता”,

 संस्मरण

        “बापू की झाकियाँ”

आत्म चरित्र

          “जीवन लीला, धर्मोदय”

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