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बालकवि बैरागी – जीवन परिचय

 

जन्म – 10 फरवरी 1931
जन्म स्थान – रामपुर मंदसौर (मध्यप्रदेश)
पिता – द्वारिकादास बैरागी
मृत्यु – 13 मई 2018

हैं करोडो सूर्य लेकिन सूर्य है बस नाम का
जो न दे हमको उजाला वे भला किस काम  के
जो रात भर लड़ता रहें उस दीप को दीजे दुआ
सूर्य से वह श्रेष्ट है तुच्छ है तो क्या हुआ

प्रख्यात साहित्यकार एवं राजनीतिकार बालकवि बैरागी का जन्म 10 फरवरी 1931 को मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में रामपुर नामक गाँव में हुआ इनके पिता द्वारिकादास बैरागी बहुत सामाजिक व्यक्ति थे जो हमेशा अपने कार्यो के साथ – साथ समाज में होने वाले विभिन्न कार्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे, बालकवि बैरागी जन्म से सहज एवं सरल स्वभाव के बालक थे, अपनी सहजता के बदौलत ही ये  काफी लोकप्रिय हुए, बैरागी के बचपन का नाम नंदराम दास बैरागी था, इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इनके गाँव में हुई और उच्च शिक्षा की पढाई इन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन कियान यहाँ से इन्होंने हिन्दी विषय से प्रथम श्रेणी में परास्नातक की उपाधि को धारण किया ! साहित्य जगत में इनकी पहचान बनती गयी और इन्होंने कविताओं का लेखन आरम्भ कर दिया इनकी रचनाओं के प्रमुख संग्रह निम्न प्रकार के हैं जिनमें “ चटक म्हारा चम्पा एवं अई जावो मैदान में ”भाभी तथा बिजुका” दादी का कर्ज” इत्यादि !

इनकी प्रत्येक रचनाओं में  बहुत ही सहज रूप से शब्दों का समावेश किया गया हैं, ये अपनी रचनाओं का लेखन मालवी भाषा में करते थे, आपको द्वारा रचित रचनाओं का प्रयोग साहित्य की दुनिया के साथ – साथ फ़िल्मी दुनिया में बखूबी किया गया, जिसमें सर्वाधिक चर्चित रेशमा और शेरा फिल्म के गीत काफी हिट हुए जो की आप की रचना है वर्तमान में देश के विश्वविद्यालयों  में बालकवि बैरागी के नाम पर पी०एचडी० का शोध कार्य भी किया जा रहा है जो की बहुत सम्मान की बात है !

बैरागी जी ने अपने राजनितिक जीवन की शुरुआत 1945 ई. में कांग्रेस पार्टी से किया और तब से लेकर अब तक ये कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे, ये एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नहीं बन सके जिसका मलात इन्हें अब तक है किन्तु ये एक सच्चे देश भक्त के रूप में देश की तरक्की में अपना योगदान समर्पित किया, राजनीती में आने के बाद इनका राजनीती कद और पद दोनों बढता चला गया, ये मनासा से काँग्रेस के अध्यक्ष रहें, किन्तु इनके सफलता की सीढ़ी यहीं तक नहीं थी बल्कि 1967 में मनासा से विधायक के पद पर लड़ें और दस वर्षों तक मनासा के विधायक रहे अपने पारिवारिक संघर्षो को याद करके कभी – कभी बैरागी जी काफी दुःखी हो जाते है, किन्तु ये अपने दुःखी को अपने स्वभाव पर प्रकट नहीं होने देते थे !

1984 ई० तक ये लोकसभा के सांसद और 1998 से 2004 तक मध्य प्रदेश से राज्य सभा के सांसद पर निर्वाचित हुए !

बैरागी जी कहते है कि “साहित्य मेरा धर्म, राजनीति मेरा कर्म, अपने धर्म और कर्म की सुचिता का पूरा ध्यान है, बाए हाथ से लिखता हूँ, ईश्वर ने मुझे पूरा ध्यान हैं, बाए हाथ से लिखता हूँ, ईश्वर ने मुझे बाएं हाथ में कलम और प० जवाहरलाल नेहरू ने मेरे दाहिने हाथ में शहीदों के खून से रंगा तिरंगा थमाया, मैं दोनों की गरिमा पर दाग नहीं लगने  दूंगा !

13 मई 2018 को यह कलम का सिपाही पंचतत्व में विलीन हो गया !

साहित्यिक परिचय –

बैरागी जी की रचनाये मंन में  एक उल्लास को भर देती हैं इनकी प्रत्येक रचना हमें कुछ बड़ा करने और धैर्य रखने की प्रेरणा अर्पित करती, ये साहित्य को अपना सब कुछ मानते थे !

रचनाए

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