जन्म – 1907 ई० जन्म स्थान – फर्रुखाबाद (उ०प्र०) पिता – गोविन्द प्रसाद वर्मा मृत्यु – 1987 ई० |
हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म 1907 ई० उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में एक संपन्न कायस्थ परिवार में हुआ था ! इनके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा, भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे एवं इनकी माता हेमरानी परम विदुषी धार्मिक महिला थी ! इन सब कारणों से इनके ऊपर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा और वे एक प्रशिद्ध कवयित्री, प्रकृति की निष्ठावान उपासिका थी ! महादेवी जी एक सफल प्रधानाचार्या के रूप में भी जानी जाती है ! मात्र नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह हो जाता है किन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा,
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इंदौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई विवाहोपरांत इन्होने उच्च शिक्षा के तरफ अपना रुख किया और सम्मानजनक श्रेणी के साथ इन्होने बी०ए० एवं एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की तदुपरान्त 1965 ई० तक प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या के रूप में कार्यरत रही ! शिक्षा के प्रति असीम योगदान के कारण इन्हे उत्तर प्रदेश विधान परिषद् का सदस्य मनोनित किया गया ! महादेवी जी ने अपने घर पर ही चित्रकला एवं संगीत की शिक्षा ली यह एक कुशल कवयित्री के रूप में विख्यात है ! साहित्य में अपनी इस श्रेष्ठ रूचि के कारण इन्होने कुछ समय तक “चाँद” पत्रिका के संपादिका के रूप में अपना योगदान दिया ! इस पत्रिका के संपादन से इन्होने नारी शक्ति के अधिकारों एवं स्वतंत्रता का समाज में सम्मान जनक स्थान दिया और कहा की नारी को अपने अधिकारों की रक्षा के लिये शिक्षित होना अति आवश्यक है ! अपने इस बहुमुखी प्रतिभा के कारण इन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा “पद्मभूषण” की उपाधि प्रदान की गयी, हिन्दी साहित्य सम्मलेन की ओर से इन्हे “सेकसरिया” का पुरस्कार तथा “मंगला प्रसाद पारितोषिक” मिला !
1 मई 1983 ई० में भारत भारती, तथा नवम्बर 1983 ई० यामा पर “ज्ञानपीठ” पुरस्कार से इन्हे सम्मानित किया गया ! इस महान कवयित्री का देहावसान 11 सितम्बर 1987 ई० को प्रयाग में हो गया !
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साहित्यिक परिचय –
साहित्य के क्षेत्र में इस कवयित्री का सर्वाधिक योगदान काव्य में है, किन्तु गध्य के में उत्कृष्ट कोटि के संस्मरण, रेखाचित्र, निबन्ध एवं आलोचना लिखी ! रहस्यवाद एवं प्रकृतिवाद पर आधारित इनका छायावादी साहित्य हिन्दी साहित्य की अमुल्य विरासत के रूप में स्वीकार किया जाता है ! विरह की गायिका के रूप में महादेवी जी को आधुनिक मीरा कहा जाता है ! इनके काव्य में वंदना की प्रधानता है ! इनका हृदय अत्यंत करुणापूर्ण सवेंदना युक्त एवं भावुक था जिसे इनकी भाषा में लोकजीवन की जीवन्तता का समावेश मिलता है !
रचनायें –
इनकी काव्यगत रचनाओं में उर्दू और अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों का समावेश मिलता है ! मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी इनकी रचनाओं में हुआ है जिससे इनकी भाषा में लोक जीवन की जीवन्तता का समावेश हो गया !
प्रमुख कृतित्व –
“निहार”, “रश्मि”, “नीरजा”, “सांध्यगीत”, “दीपशिखा”, “यामा”, !
अन्य कृतित्व –
“सन्धिनी”, “आधुनिक कवि”, “सप्तपर्णा”, “अतीत के चलचित्र”, “स्मृति के रेखाएं” “श्रृंखला की कड़ियाँ” !