जन्म – 23 सितम्बर 1908 ई०
जन्म स्थान – मुंगेल जिला(बिहार ) पिता –श्री रवि सिंह मृत्यु – 24 अप्रैल 1978 ई० |
दिनकर जी जन्म 23 सितम्बर सन 1980 ई० बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक ग्राम में एक साधारण परिवार में हुआ था ! इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्री मति मनरूपा देवी था ! बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात इन्होंने कुछ समय के लिए उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक का कार्य संभाला !
इसके बाद सन 1934 ई में सरकारी विभाग के सब रजिस्ट्रार की नौकरी की सन 1950 ई० में इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया ! सन 1952 ई० में इन्हें “राष्ट्रपति डॉ०राजेन्द्रप्रसाद” द्वारा राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया ! कुछ समय तक दिनकर जी भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे ! उसके पश्चात् भारत सरकार के गृह – विभाग में हिंदी सलाहकार के रूप में दीर्घकाल तक कार्य किया और इसी के साथ हिंदी के संवर्धन एव प्रचार – प्रसार में लगे रहे ! हिन्दी के प्रति इनके अधिक समर्पण एवं योगदान के कारण इन्हें “ज्ञानपीठ पुरस्कार” से भी सम्मानित किया गया !
सन 1959 ई० में भारत सरकार ने इन्हें “पदमभूषण” से सम्मानित किया तथा सन 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय ने डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की ! प्रतिनिधि लेखक व कवि के रूप में इन्होंने अनेक देशों की यात्राये की ! दिनकर जी का असामयिक देहान्त 24 अप्रैल 1974 को हो गया !
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साहित्यिक रचनायें –
क्रांति का विगुल बजाने वाले दिनकरजी कवि ही नहीं अपितु एक सफल गघकार भी थे ! इनकी कृतियों में इनका चिंतन एव मनीषी रूप प्रतिबिम्बित होता है ! इनके गघ में विषयों की विविधता एव शैली की प्रांजलता स्पष्ट दिखलाई देती है ! साहित्य में इन्होने काव्य, संस्कृत, समाज जीवन आदि विषयों पर अति उत्कृष्ट लेख लिखे है
रामधारी सिंह दिनकर छायावादोत्तर हिंदी – काव्यधारा के प्रमुख कवि, आलोचक, विचारक, निबन्धकार के रूप में हिंदी जगत में विशिष्ट स्थान के अधिकारी है –
दर्शन एव संस्कृत –
“धर्म”,भारतीय संस्कृति की एकता !
निबन्ध ग्रन्थ –
“अर्धनारीश्वर” , “वट-पीपल”, “उजली आम”, “मिटटी की ओढ़”, “रेती के फूल” आदि !
यात्रा साहित्य –
“देश- विदेश”
बाल – साहित्य –
“मिर्च का मजा”, “सूरज का ब्याह” आदि
काव्य –
“रेणुकी”, “हुकर”, ”कुरु क्षेत्र”, “सामधेनी”, “रश्मिरथी”, और “परशुराम की प्रतिज्ञा “ आदि !