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राहुल सांकृत्यायन – जीवन परिचय

जन्म – 9 अप्रैल सन 1893 ई०

जन्म स्थान – पंदहा (आजमगढ़ उ०प्र०)

पिता – गोवर्धन पाण्डेय

मृत्यु – 14 अप्रैल सन 1963 ई०

घुमक्कड़ शास्त्र के जनक राहुल सांस्कृत्यायन जी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले पंदहा नामक ग्राम में 9 अप्रैल सन 1893 ई० को हुआ ! पंदहा में इनका ननिहाल था जहा इनके नाना पण्डित रामशरण पाठक रहते थे ! इनके पिता पंदहा से दस मिल की दुरी पर कनैला ग्राम रहते थे बचपन में इन्हे केदारनाथ पाण्डेय के नाम से जाना जाता था किन्तु बौद्ध धर्म में आस्था होने के कारण इन्होंने अपना नाम परिवर्तित करके महात्मा बुद्ध के पुत्र राहुल के नाम से अपना नाम राहुल कर लिए और सांकृत्य इनका गोत्र था जिससे ये राहुल सांस्कृत्यायन के नाम से विख्यात हुए, इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय एवं निजामाबाद में हुई ! जहाँ से इन्होने 1907 ई० में उर्दू विषय से मिडिल पास किये !

सके उपरांत ये उच्च शिक्षा के लिए वाराणसी चले गए क्योकि पिता जी की इच्छा थी की ये उच्च शिक्षा प्राप्त करे यहीं पर इन्होने पालि-साहित्य का अध्ययन किया किन्तु इनकी रूचि पढ़ने में कम घूमने में बहुत अधिक थी !

नके इस प्रवित्ति के कई कारण उल्लखित जिनमे मुख्य रूप से इनके नाना के द्वारा बताई गयी दक्षिण भारत से जुडी विभन्न प्रकार की रोचक कहानियां है क्योकि इनके नाना सेना में सिपाही थे जिससे वे विभिन्न जगहों की यात्रा किये हुए थे

त: अपने बिताये हुए समय का हमेशा राहुल जी से गुणगान किया करते थे ! इन्हें अपने कक्षा तीन की किताब (मौलवी इश्माइल) का एक शेर सदैव याद करते व कहते फिरते थे …..

         सैर कर दुनिया की ग़ालिब जिंदगानी फिर कहां !

         जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ !!

इस शेर से इनके मन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और इसी शेर को याद करके ये अपना घुमक्कड़ी जीवन आरम्भ कर दिये !

अपने जीवन काल में इन्होने सम्पूर्ण एशिया महाद्वीप को पूरी तरह से घूम डाला ! कोरिया, मंचूरिया, ईरान, अफगानिस्तान, जापान, नेपाल, बद्रीनाथ-केदारनाथ, कुमायूँ गढ़वाल, केरल, कर्नाटक, कश्मीर, लद्दाख आदि के पर्यटन को इनकी दिग्विजय कहने में कोई आयुक्त नहीं होगी !

घुमक्कडी के अपने शौक के कारण इन्होने पूरा घुमक्कड़ शास्त्र ही लिख डाला अपनी जीवन यात्रा में राहुल जी ने स्वीकार किया कि उनका साहित्यिक जीवन सन 1927 ई० को आरम्भ हुआ ! घुमक्कडी दुनिया का यह कोहिनूर 14 अप्रैल सन 1963 ई० को पंचतत्व में विलीन हो गया !

साहित्यिक परिचय ––

नके साहित्यिक जीवन में दुनिया को घूमने और उनके रोमांचकारी पहलुओं का समावेश मिलता है ! ये हिन्दी भाषा के महान उपासक और साहित्य में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, इनका अध्ययन जितना विशाल था, साहित्य-सृजन भी उतना ही विराट था ! इन्होंने धर्म, भाषा, यात्रा, दर्शन, इतिहास, पुराण, राजनीति आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है ! साहित्य में इन्होंने अपभ्रंश काव्य साहित्य “दक्खिनी हिन्दी साहित्य” आदि श्रेष्ठ रचनायें प्रस्तुत की थी !

चनायें ––

पनी रचना में इन्होने सामान्यतः संस्कृतनिष्ठ परन्तु सरल और परिष्कृत भाषा को अपनाया है ! इनकी रचनाओं में एक ओर प्राचीनता के प्रति मोह और इतिहास के प्रति गौरव का भाव विद्यमान है इन्हें सर्वाधिक सफलता यात्रा साहित्य लिखने में मिली है !

प्रसिद्ध ग्रन्थ ––

थातो घुमक्कड़ जिज्ञासा

मुख्य रचनायें ––

लंका, तिब्बत यात्रा, जापान, ईरान और रूस में पच्चीस मास, बोल्गा से गंगा, सिंह सेनापति, जय यौधेय, मेरी जीवन यात्रा (आत्मकथा), विश्व की रुपरेखा, राष्ट्रभाषा कोष इत्यादि !

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