प्रो. ट्रिवार्था के अनुसार-
”पृथ्वी से परिवेष्ठीत गैसों का एक विशाल आवरण जो पृथ्वी का अभित्र अंग है और उसे चारों ओर से घेरे हुए है, वायुमंडल कहलाता है !”
वायुमंडल को पांच परतों में माना गया है !
1 ) परिवर्तन (क्षोभ) मण्डल –
यह वायुमण्डल का सबसे निचे का भाग है जो धरातल से 16 किलोमीटर की ऊचाई तक एवं ध्रुवों पर 10 किमी की ऊचाई तक पाया जाता है ! इस भाग में जलवाष, धुल-कण और भारी गैसें अधिक पायी जाती है ! वायुमण्डल के इस भाग में वायु कभी शांत नहीं रहता यंहा आंधी, मेघ गर्जन, विद्युत का चमकना, कडकना, इत्यादि अनुभव होते है ! इसमें पवनें और संवहनीय धाराएँ निरतंर चला करती है जो ताप और आर्द्रता को काफी उंचाई तक वितरित करती रहती है ! इस भाग में उचाई के अनुसार ताप गिरता जाता है ! यहाँ प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1० सेंटीमीटर तापमान कम होता है ! इसे ताप की सामान्य ह्रास दर कहा जाता है !
मध्य या क्षोभ स्तर –
क्षोभमण्डल एवं समतापमण्डल के बिच एक संक्रमण पट्टी होती है ! इसकी उंचाई ध्रुवों पर 10 किलोमीटर एवं विषुवत रेखा पर 16 किलोमीटर है ! इसे मध्य स्तर कहते है ! इसकी मोटाई 1.5 से 2 किलोमीटर है ! इसमें तापमान प्राय: समान रहते है ! इनकी निचली सीमा पर जेट पवनें चलती है !
2) समतापमण्डल –
इसकी ऊचाई 16 से 30 किलोमीटर तक आंकी गयी है ! यहाँ क्षैतिज रूप से पवनें चला करती है ! संम तापमान, मेघों का अपेक्षाकृत अभाव और हल्की पवनें इस मण्डल की अन्य विशेषताए है ! यहाँ जल-वाष्प और धुल-कण प्राय: स्थिर रहते है ! यहाँ वायुमण्डल प्रभावकारी घटनाएं यथा – आंधी, तूफ़ान,हिम, मेघगर्जन, आर्द्रता, धुलकण, आदि नहीं पाई जाती है !
3) ओजोनमण्डल –
यह 30 से 80 किमी की उंचाई तक फैला हुआ है ! इस भाग में ओजोन गैंस को प्रधानता रहती है ! यह गैस सूर्य से निकलने वाली अत्यंत गरम परकासनी (पराबैंगनी) किरणों को सोख लेती हैं ! इनमें निहित ओजोन गैस (O2) के साथ पराकासनी (पराबैगनी) किरणें ओजोन गैस का आणविक विघटन करती है जिससे इनकी शक्ति समाप्त हो जाती है ! धरातल से पहुचनें वालो आक्सीजन (O2)परमाणु आक्सीजन (O) को पुनः मिलाती है जिससे O3 बनती है यह प्रक्रिया निरतंर इस मंडल में चलती रहती है ! इस मंडल से तापमान धीरे-धीरे ऊचाई की ओर बढ़ने लगता है ! इसका जलवायु पर भी पर्याप्त प्रभाव पड़ता है !
4) आयनमण्डल –
ओजोनमण्डल के ऊपर वायु की कई तहें पायी जाती है ! इन्हीं कुछ तहों को आयनमण्डल कहा जाता है ! वायुमण्डल का यह भाग 80 से 640 किलोमीटर तक विस्तृत है ! इस भाग से स्वतन्त्र आयन की संख्या पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है ! आकाश का नीलवर्ण, धुवीय प्रकाश और ब्रह्माण्ड किरणें इस भाग की विशेषताए हैं ! इस मण्डल में तापमान की वृद्धि तेजी से होती है क्योकिं यहाँ की पवने ब्रह्माण्ड किरणों को सोखकर विद्युनम्य हो जाती है !
5) बहिर्मंण्डल –
वायुमण्डल में ऊचाई के हिसाब से यह सबसे ऊँची और अंतिम परत है, जिसकी ऊचाई अनुमान 640 से 1,000 किलोमीटर और इससे भी अधिक आंकी गयी है ! यहाँ पर सबसे हल्की गैसें रुई के गुच्छे की भांति तैरती रहती हैं !