SURYAKANT TRIPATHI “NIRALA” BIOGRAPHY // SURYAKANT TRIPATHI “NIRALA” JEEVAN PARICHAY
जन्म- 1897 ई०
जन्म स्थान- मेदिनीपुर (पश्चिम बंगाल)
पिता- पं० रामसहाय त्रिपाठी
मृत्यु- 1961 ई०
हिन्दी साहित्य के प्रख्यात कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 1897 ई० को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में हुआ था, इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले थे, व बंगाल में महिषादल में सिपाही की नौकरी किया करते थे, सूर्यकान्त त्रिपाठी का जन्म रविवार के दिन हुआ था जिसकी वजह से सुर्जकुमार कहलाये इनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगला भाषा से हुई और विघालयी शिक्षा में इन्होने मात्र मैट्रिक तक की पढाई पूरी किये, बचपन से ही निराला जी बहुत होनहार बालक थे इन्हें पढाई के साथ-साथ कुश्ती, घुड़सवारी और कई प्रकार के खेलों का बहुत शौक था, मात्र तीन वर्ष की अवस्था में इनकी माता जी का देहान्त हो गया जिससे इनका बचपन बहुत सुखमय व्यतीत नहीं हुआ, बचपन में ही इनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया ! निराला जी को बंगला भाषा के साथ-साथ हिन्दी में भी काफी रूचि था, अपने अध्ययन में इन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी का बखूबी ज्ञान अर्जित कर लिया था, एक बार इनकी मुलाकात हिन्दी साहित्य के प्रख्यात रचनाकार पं० महावीर प्रसाद दिवेदी से हुई जिनके मार्ग दर्शन से भी इन्होने अपनी कई रचनाओं का सृजन किया अपने पिता की छोटी सी नौकरी होने के कारण इन्हें कई बार समाज में तिरस्कृत होना पड़ा किन्तु इनके ऊपर इस बात का कोई गहरा प्रभाव नहीं पड़ा, और ये अपनी लेखनी में निरन्तरता बनाये रहे यह हमेशा गरीबों के बीच में, शोषित किसानों के बीच में रहा करते थे, इनकी दो संताने थी जिनमें एक पुत्र एवं एक पुत्री थी, परिवार में आर्थिक कठिनाइयों का दौर उस समय व्यापक हो गया, जब प्रथम विश्व युध्द के दौरान इनकी पत्नी, चाचा, भाई और भाभी का महामारी की वजह से निधन हो गया कुछ समय के उपरान्त इनकी पुत्री सरोज का भी निधन हो गया जिसकी वजह से निराला जी काफी कुण्ठित हो जाते हैं, अपने जीवन में आई तमाम समस्याओं के बावजुद भी निराला जी ने अपने सिद्धांत से हटकर कभी भी समझौते का रास्ता नहीं अपनाया और अपना सम्पूर्ण जीवन आर्थिक संघर्षों में व्यतीत किया, ये स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद से काफी प्रभावित थे ! हिंदी साहित्य का यह निराला काव्यकर इलाहाबाद शहर के दारागंज मोहल्ले में सन 1961 ई० को इस संसार को अलविदा कह जाता है !
साहित्यिक परिचय
निराला जी की ख्याति एक छायावादी कवि के रूप में बनती है साहित्य रचना में इनका पदार्पण इनकी रचना “जन्मभूमि की वंदना” से आरम्भ होती है ये निरंतर “मर्यादा” और “सरस्वती” पत्रिका का अध्ययन करते थे, इनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना “जूही की कली” रही छायावादी कवियों में इनका अनोखा स्थान है !
रचनाएं
बादल राग, भिच्छुक, विधवा, अनामिका, सरोज-स्मृति, पंचवटी प्रसंग, दान, तोड़ती पत्थर, कुकुरमुत्ता, नये पत्ते, अलका, प्रभावती, आराधना, बेला, अर्चना, अणिमा, निरुपमा, लिली, चतुरी इत्यादि !