AYODHYA SINGH UPADHYAY BIOGRAPHY // AYODHYA SINGH UPADHYAY JEEVAN PARICHAY
जन्म – 15 अप्रैल 1
जन्म तिथि- निजामाबाद (आजमगढ)
पिता – भोलासिंह उपाध्याय
मृत्यु – 6 मार्च 1945
नीले फुले कमल दल सी गात की श्यामता है
पिला प्यारा वसन कटी में पैन्ह्ते हैं कबीला
छुटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती
सद्धस्त्रो में नवल तन की फूटती सी प्रभा है !
द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और गद्य लेखक अयोध्या सिंह उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में निजामाबाद में हुआ था ! इनके पिता का नाम पं० भोलासिंह उपाध्याय था, इन्होंने सिख धर्म को अपनाकर अपने नाम में सिंह शब्द को जोड़ लिया, किन्तु इनके पूर्वज सनाढ्य ब्राह्मण थे, और पूर्वजों का मुगल शासकों के दरबार में बहुत ही सम्मान था, हरिऔध जी की प्रारम्भिक शिक्षा इनके गाँव निजामाबाद में सम्पन्न हुई, पांच वर्ष की अवस्था में इन्होंने अपने चाचा के संरक्षण में फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान अर्जित कर लिया, गाँव से आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद ये बनारस के क्वींस कालेज में अंग्रेज़ी पढने गये किन्तु कुछ समय के उपरांत इनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया जिसकी वजह से इन्होंने क्वींस कालेज की शिक्षा को अधूरे पर ही छोड़कर वापस अपने गाँव निजामाबाद आ गये, गाँव आने के बाद इन्होंने अपने घर से ही संस्कृत,उर्दू , फारसी औए अंग्रेज़ी आदि का गहन अध्ययन किया, यह एक सरल स्वभाव के बालक थे जो अपनी सरलता के कारण काफी चर्चित थे, 1884 ई० में इन्होने निजामाबाद के उच्च प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक के पद पर अपनी सेवाओं को देना आरम्भ किया, नौकरी प्रारम्भ करने के कुछ वर्षो में ही इनका विवाह आनन्द कुमारी के साथ हो गया
सन 1889 ई० में अपनी मानसिक दक्षता और कार्य कुशलता के द्वारा इन्होंने कानूनगो के पद पर अपना कार्य एक सरकारी कर्मचारी के तौर पर आरम्भ किया , कानूनगो के पद पर हरिऔध जी ने 1932 ई० तक अपनी सेवाओं को दिया, कानूनगो के पद से मुक्त होने के बाद ये बनारस के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बिना किसी वेतन के अध्यापन का कार्य आरम्भ दिए 1932 से 1941 तक यहाँ पर भी अपनी सेवाओं को दिया !
इसके बाद ये वापस अपने गाँव निजामाबाद चले गये जहाँ पर इन्होंने साहित्य के प्रति अपनी रचनाओं का सृजन आरम्भ किया अपनी साहित्य रचनाओं के माध्यम से साहित्य जगत में इन्होंने काफी ख्याति अर्जित कर लिया ! हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा इन्हें सभापति बनाया गया और साहित्य में विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया गया, द्विवेदी युग के इस महान कवि का 6 मार्च 1945 ई० को निधन हो गया !
साहित्यिक परिचय
द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि हरिऔध जी पहले ब्रज भाषा में अपनी रचनाओं को रचित करते थे, वणर्य विषय की विधता के तौर पर और काव्य वृत्त में भक्तिकाल रीतिकाल और आधुनिक काल का विस्तृत समावेश मिलता है !
रचनाये
- प्रिय प्रवास (सबसे प्रसिद्ध महाकाव्य )
- वैदेही वनवास
- पारिजात चुभते चौपदे
- चोखे चौपदे
- रस कलश
- अधखिला फूल
- ठेठ हिन्दी का ठाठ
- रुकिमणी परिणय (नाटक ) आदि
- इनकी रचनायें है !