KESHAV DAS BIOGRAPHY//KESHAV DAS JIVAN PARICHAY//JIVAN PARICHAY KESHAV DAS
जन्म – 1555 ई०
जन्म स्थान- ओरछा बुल्देलखंड
पिता – काशीनाथ
मृत्यु- 1617
Table of Contents
तामहँ केशवदास विराजत
राजकुमार सबै सुखदाई I
देवं स्यों जनु देवसभा
सुभ सीय स्वयंवर देखन आई II
रीतिवादी परम्परा के संस्थापक, प्रचारक महाकवि केशवदास का जन्म 1555ई० के आस –पास बुदेलखंड के ओरछा में हुआ था, इनके पिता काशीनाथ एक ढनाढय ब्राह्मण थे, और भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदी मिस्र ब्राह्मण थे, ओरछा के राज परिवार में इनके परिवार का काफी मान सम्मान था, ओरछा नरेश महाराज रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि केशवदास थे, इन्द्रजीत सिंह के दरबारी में ये कवि ही नहीं बल्कि उनके मंत्री और गुरु भी थे, महाराज की तरफ से केशवदास को भेंट स्वरूप 21 गाँव मिले थे इसी में ये अपने पुरे आत्म सम्मान के साथ विलासिता पूर्ण जीवन जीते थे, महाराजा वीर सिंह देव का संरक्षण भी इन्हें प्राप्त था जिसकी वजह से इन्हें कभी भी कोई समस्या उत्पन्न नहीं हुयी, केशवदास संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे, इनका संस्कृत से गहरा लगाव होने के कारण ये अपने आस-पास के लोगों को संस्कृत में वार्तालाप करने की प्रेरणा देते थे, इनके यहाँ काम करने वाले नौकर भी संस्कृत में बात करते थे, इन्हें हिन्दी भाषा में बोलना सदैव अपमान जनक प्रतित होता –
भाषा बोल न जानहीं, जिनके कुल के दास !
तिन भाषा कविता करी, जडपति केशव दास
केशवदास काफी मिलन सार एवं भावुक व्यक्ति थे, इन्हें कोई कुछ भी कह देता तो ये उसकी बातों पर नाराज हो जाया करते थे, इन्होंने व्यावहारिक जगत की बातों, राजनीति, ज्योतिष और वैघक का काफी गहराई से अध्ययन किया, ये संस्कृत के विद्वान् तथा अलंकार शास्त्री थे जिससे ये अपने काव्य क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध शास्त्रानुमोदित प्रथा के कवि बने, इन्होंने संस्कृत के आचार्यो की परम्परा का हिन्दी में सूत्रपात किया ! केशवदास का रीतिकाल में सर्वाधिक तथा सर्वश्रेष्ठ योगदान हैं, इनकी घनिष्ठता महाराजा अकबर, बीरबल और टोडरमल से काफी अधिक थी ! ये हिन्दी साहित्य के प्रथम महाकवि हुये,
1608 ई० के आस-पास जहाँगीर ने ओरछा राज्य वीर सिंह को दिया केशवदास कुछ समय तक वीरसिंह के दरबार में रहें फिर ये गंगा किनारे रहने लगे रीतिवादी परम्परा के इस प्रचारक का 1617 ई० में देहावसान हो गया !
साहित्यक परिचय
इनकी रचनाओं में भाव पक्ष की अपेक्षा कला पक्ष की अधिकता मिलती, वास्तुकला तथा ललित कला का शानदार नमुना इनकी रचनाओ में बखूबी मिलता है, ये रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि ही नहीं बल्कि युग प्रवर्तक भी रहें ! केशवदास की रचित ग्रंथो में लगभग 16 ग्रंथो की रचना का प्रमाण मिलता है, इनकी साहित्यिक रचना सर्वाधिक संस्कृत भाषा में मिलती है !