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ज्वार-भाटा की उत्पति | Tide

ज्वार–भाटा(Tides)

ज्वार–भाटा समुन्द्र जल की एक महत्वपूर्ण गति है ! इस गति के माध्यम से सागर में जल-स्तर की मात्रा घटती-बढ़ती रहती है ! अत: सागर की इस गति के परिणामस्वरूप जल के स्तर में सदैव परिवर्तन होता रहता है ! महासागरीय जल सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से ऊपर उठता है और आगे की ओर बढ़ता है ! इस अवस्था को ज्वार कहते है ! जल के नीचे उतरने अथवा पीछे हटने को भाटा कहा जाता है !

ज्वार-भाटा के अतंर्गत सागरीय जल-स्तर के उस परिवर्तन को ही सम्मिलित किया जाता है जो सूर्य और चंद्रमा को आकर्षण शक्ति द्वारा होते हैं ! सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की स्थिति ज्वार के समय निम्नवत होती है

महासागरीय जल में सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के फलस्वरूप ही ज्वार की उत्पत्ति होती है ! चन्द्रमा के ठीक सामने का पृथ्वी का धरातल चन्द्रमा से सबसे नजदीक होता है, जबकि चंद्रमा के धरातल से पृथ्वी का केंद्र एवं उसका पृष्ठ भाग कहीं अधिक दूर होता है ! गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव की गणना में यह दूरी विशेष महत्वपूर्ण है ! अत: पृथ्वी का वह भाग जो चन्द्रमा के सामने पड़ता है चंद्रमा की आकर्षण शक्ति से सर्वाधिक प्रभावित होता है तथा इसके ठीक पीछे वाला भाग सबसे कम प्रभावित होता है ! सामने पड़ने वाले भाग का जल आकर्षित होकर ऊपर की ओर उठता है, जिससे सागर में ज्वार आता है ! यही स्थिति पृथ्वी के इस भाग के बिल्कुल पीछे वाले भाग में भी होती है ! पीछे के भाग में जल के पीछे रहने एवं केंद्र प्रसारी बल के सम्मिलित प्रभाव से ज्वार आता है ! इस प्रकार एक समय में पृथ्वी पर दो ज्वार उत्पत्र होते है एक तो चन्द्रमा के सामने व दूसरा उससे ठीक पीछे के भाग में चन्द्रमा के सामने व उसके विपरीत भागों के बीच पर दो स्थान ऐसे भी होते है जहाँ से जल खीचकर ज्वार वाले स्थान पर आ जाता है ! अत: इन स्थानों पर जल सतह से नीचा रहता है ! इसे भाटा कहते है ! पृथ्वी की परिभ्रमण के कारण प्रत्येक स्थान पर 24 घंटे में दो बार ज्वार एवं दो बार भाटा आता है !

ज्वार भाटा : समय व अन्तर –
ज्वार प्रत्येक स्थान पर प्राय: दो बार आता है लेकिन ज्वार के आने का समय नियमित रूप से एक ही नहीं रहता है इसका मुख्य कारण यह है ! कि पृथ्वी 24 घंटे में अपनी कक्षा पर एक चक्कर पूरा करती है पृथ्वी अपना यह चक्कर पश्चिम से पूर्व की ओर लगाती है ! चन्द्रमा भी अपनी धुरी पर घूमते हुए पृथ्वी चक्कर लगाता है !अत: चन्द्रमा अगले एक दिन में अपने निश्चित ज्वार केंद्र से कुछ आगे बढ़ जाता है ! इस कारण ज्वार केंद्र को चंद्रमा के इस नवीन केंद्र के ठीक नीचे तक या चन्द्रमा के सामने पहुँचने में लगभग 52 मिनट का समय अधिक लगता है इस प्रकार प्रति अगले दिन ज्वार केन्द्र को चन्द्रमा के सामने आने में कुल 24 घंटे 52 मिनट लगते है इसी कारण अगला ज्वार ठीक 12 घंटे बाद न आकर 12 घंटे 26 मिनट बाद दोनों ओर आता है !

ज्वार-भाटा के प्रकार

(1)वृहत अथवा दीर्घ ज्वार
ज्वार उत्पत्र करने में चन्द्रमा की भूमिका महत्वपूर्ण है, परन्तु सूर्य का प्रभाव भी ज्वार उत्पन्य करने में सहायता करता है ! जब सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा तीनों एक सीध में होते है तो सूर्य और चन्द्रमा की संयुक्त आकर्षण शक्ति से बृहत अथवा दीर्घ ज्वार उत्पत्र होता है ! यहाँ सूर्य का प्रभाव कम दिखाई देता है क्योकि सूर्य पृथ्वी से औसतन 14 करोड़ 85 लाख किलोमीटर दूर है. जबकि चंद्रमा केवल 4,04,800 किलोमीटर है ! चंद्रमा की निकटता का प्रभाव ज्वार में स्पष्ट दिखायी देता है ! सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में प्रत्येक पूर्णमासी तथा अमावस्या को होते है ! इस स्थिति को “सिजिगी” कहते है ! इस दिनों में वृहत् ज्वार की उंचाई सामान्य दिवसों की अपेक्षा 20 प्रतिशत अधिक होती है

(2) लघु ज्वार
लघु ज्वार पूर्णमासी तथा अमावस्या के मध्य कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष  की सप्तमी अथवा अष्टमी की तिथियों में सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के साथ समकोण बनाते है ! समकोणीय स्थिति के द्वारा सूर्य और चन्द्रमा, महासागरीय जल को अपनी-अपनी ओर आकर्षित करते है ! इस कारण महासागरों में इस दिन पानी का उतार व चढ़ाव सबसे कम रहता है, अत: इसे लघु ज्वार कहते है ! यहाँ भी चंद्रमा के नीचे जल-तल सापेक्षत ऊचा रहता है !

(3) दैनिक ज्वार-भाटा
एक ही स्थान पर जब एक ज्वार और एक भाटा आता है, तब इसे दैनिक ज्वार-भाटा कहते हैं ! इन ज्वारों में 24 घंटे 52 मिनट का अन्तर होता है !

(4) अर्द्ध-दैनिक ज्वार-भाटा
एक ही स्थान पर जब दो बार ज्वार आते है तब एक ज्वार और दुसरे ज्वार में 12 घंटे 26 मिनट का अन्तर रहता है ! अर्द्ध-दैनिक ज्वार तथा भाटा में ऊचाई तथा निचाई क्रमशः समान रहती है !

(5) मिश्रित ज्वार भाटा
अर्द्ध-दैनिक ज्वार में असमानता को प्रकट करने की स्थिति को मिश्रित ज्वार–भाटा कहते हैं ! मिश्रित ज्वार-भाटा में दोनों भाटों के बीच में और अन्तर पाया जाता है ! जैसा की इंग्लैंड के दक्षिण-पूर्वी तट पर चार बार ज्वार व चार बार भाटा आता है !

ज्वार भाटा मानव जीवन पर प्रभाव

(1) ये नदियों द्वारा लाये गये कचरों को बहाकर साफ कर देते हैं, जिससे डेल्टा के बनने की गति धीमी हो जाती है ।
(2) ज्वारीय तरंगें नदियों के जल स्तर को ऊपर उठा देती हंै जिससे जलयान आंतरिक बंदरगाहों तक पहुँच पाते हैं ।
(3) ज्वार-भाटा का उपयोग मछली पालने तथा मछली पकड़ने के लिए किया जाता है ।
(4) फ्रांस तथा जापान में ज्वारीय ऊर्जा पर आधारित विद्युत केन्द्र स्थापित किये गये हैं।

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