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Pratap Narayan Mishra – Jeevan Parichay //Biography
जन्म – 1856 ई०
जन्म स्थान – बैरेगाँव, उन्नाव(उ.प्र.)
पिता – संकटा प्रसाद (ज्योतिषाचार्य)
मृत्यु – 6 जुलाई 1894 ई.
“कलि प्रभाव” जैसे विख्यात नाटक की रचना करने वाले हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार प्रतापनारायण मिश्र का जन्म उन्नाव जिले के बैजे गाँव में पं० संकटा प्रसाद के घर पर हुआ, इनके पिता प्रख्यात ज्योतिषी थे और इसी में निपुण होने के कारण ये अपना जीविकोपार्जन ज्योतिष विद्या के माध्यम से करते थे, प्रताप नारायण अपने पिता के साथ अधिक दिनों तक उन्नाव में नहीं रहें, बल्कि अपने पारिवारिक कार्य के कारण इनके पिता उन्नाव छोड़कर कानपुर में बस गये, इनके पिता की इच्छा थी कि उनका बेटा भी ज्योतिष विद्या को सीखे और इसी दिशा में अपना भविष्य बनाये किन्तु प्रतापनारायण जी का मन इस कार्य में बिल्कुल नहीं था !
अत: ये अपने पिता के द्वारा बताये गये रास्ते पर न चलकर साहित्य की दुनिया से प्रेम करने लगे, किसी भी विषय को इन्होंने मन लगाकर नहीं पढ़ा, इसके बावजुद इन्हें हिन्दी, उर्दू, फारसी, संस्कृत और बँगला का अच्छा ज्ञान था ! वस्तुतः इन्होनें स्वाध्याय ही विभिन्न भाषाओं का गहन ज्ञान प्राप्त कर लिया था !
अपने छात्र जीवन में ही “कविवचन सुधा” का नियमित अध्ययन करते थे ! इस कारण से ये एक प्रसिध्य एवं सुचितापूर्ण तरीके से रचना करने वाले निबन्धकार एवं नाटककार के रूप में विख्यात हो गये !
मिश्र जी भारतेन्दु हरीशचंद्र के जीवन से काफी प्रभावित थे, और इन्हें अपना गुरु भी मानते थे, भारतेन्दु जी के तरह, ठीक उसी भाषा शैली को अपनाकर इन्होंने अपनी रचनाओं को मूर्त रूप देने का कार्य आरम्भ किया अपनी रचनाओं में प्रताप जी ने व्यावहारिकता एवं मृदुलता का बहुत प्रगाढ़ रूप में समावेशन किया कानपुर में इन्होंने एक नाटक सभा की स्थापना किया और इसी के माध्यम से समाज को अपनी रचनाओं का मंचन कराकर लोगों को उचित मार्ग प्रशस्त करने का कार्य भी करने लगे !
मिश्र जी बहुत ही प्रेमी एवं जिंदादिल इंसान थे, साहित्य की दुनिया में ये इतने रम गये थे कि इन्हें अपने खान-पान का जरा सा भी ख्याल नहीं रहता था, इन्हीं अनियमितताओं के कारण युवावस्था में ही इनका शरीर बुढा़पे की तरह दिखने लगा, अतंत: 1892ई० को ये एक गंभीर बिमारी की चपेट में आ गये और इस बीमारी ने लगातार डेढ़ वर्ष तक इनके शरीर पर अपना कब्ज़ा जमाये रखा और 6 जुलाई 1894 ई० को भारतेन्दु युग का यह प्रख्यात नाटककार मात्र 38 वर्ष की अल्पायु में स्वर्ग सिधार गया !
साहित्यिक परिचय –
आरम्भ के दिनों में इनकी रूचि लोक-साहित्य को सृजनात्मक रूप देने की थी ! इसी के साथ ये कुछ दिनों के उपरान्त हिन्दी गद्य की दिशा में लौट आये, नाटक लेखन के साथ अभिनय की दुनिया में भी यह एक कुशंल अभिनेता माने जाते थे , इनका कहना था कि दांत, भौं, वृध्द, धोखा जैसे साधारण शब्दों पर भी चमत्कारपूर्ण रचना की जा सकती है !
रचनायें-
प्रताप समीक्षा, प्रताप पीयूष, कलि प्रभाव, गौ संकट, भारत-दुर्दशा, मन की लहर, श्रृंगार विलास, प्रेम पुष्पावली, प्रताप लहरी, हिन्दुस्तान आदि !
प्रसिद्ध नारा –
हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान
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