जन्म – 28 अगस्त 1896
जन्म स्थान – गोरखपुर (उ०प्र०)
पिता – मुंशी गोरख प्रसाद
मृत्यु – 3 मार्च 1892
फजा है दहकी हुई रक्स में है शोला०ए०गुल
जहाँ वो शोख है उस अंजुमन की आँच न पुछ
उर्दू के प्रसिद्ध रचनाकार एवं प्रसिद्ध शायर रघुपति सहाय उर्फ़ फिसक गोरखपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 28 अगस्त 1896 को हुआ, पिता मुंशी गोरख प्रसाद बहुत ही प्रतिष्ठित यक्ति थे और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में उचित स्थान रखते थे ! इनका परिवार कायस्थ समाज से था ! फिराक ने रामकृष्ण के कहानियों के माध्यम से अपनी प्रारभिक शिक्षा का आरम्भ किया और कुछ समय के उपरांत अरबी, फारसी और अंग्रेजी भाषा का भी गहन अध्ययन कर लिया ! इन्होनें कला से स्नातक किया और पुरे प्रदेश में चौथा स्थान प्राप्त किया इसके उपरांत ये आई०सी०एस० में चुने गए ! किन्तु गांधी जी से प्रेरित होने और देश की क्रांतिकारी आन्दोलन के कारण इन्होनें अपने इस पद से 1920 में त्याग पत्र दे दिया और गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हो गये ! असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित होने के कारण ब्रिटिश सरकार के द्वारा इन्हें डेढ़ साल तक जेल की सजा काटने की सजा दी गयी ! जेल से छूटने के बाद कांग्रेस के नेता पं० जवाहर लाल नेहरु ने इन्हें अखिल भारतीय काँग्रेस के दफ्तर में अवसर सचिव के पद पर नियुक्त किया ! किन्तु जब नेहरू जी यूरोप चले गए तो इन्होनें अवसर सचिव के पद को छोड़ दिया !
फिर इन्होने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1930 से 1959 तक अंग्रजी विषय के प्राध्यापक के रूप में अपनी सेवाएं प्रदान किया और उर्दू साहित्य के एक बड़े हिस्से रूमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता को लोक जीवन और प्रकृति के पक्ष पर बहुत कम उभार पाये साथ ही इन रिवायतों को तोड़ने में फिराक गोरखपुरी का नाम भी जुड़ा हुआ है, इन्होने सामाजिक दु:ख दर्द को व्यक्तिगत अनुभूति के साथ शायरी में वर्णित किया और दैनिक जीवन के कड़वे सच और आने वाले कल के प्रति उम्मीदों, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर फ़िराक ने अपनी शायरी का अनुठा महल स्थापित किया, भारतीय संस्कृति की इतनी गहरी समझ के कारण इनकी शायरी भारत की मूल पहचना बन गयी ! 1970 में इनके द्वारा रचित कृति “गुले नग्मा” के लिए इन्हें प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ! फ़िराक एक बेबाक, मुहफट एवं दबंग लेखक थे जो बिना किसी झिझक के अपनी बातों को प्रकट कर देते थे ! उर्दू साहित्य का यह जगमगाता सितारा 3 मार्च 1982 को इस दुनिया से अलविदा कह गया !
साहित्यिक परिचय
फ़िराक ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुवात गजल से किया ! अपने परंपरागत भावबोध और शब्द भण्डार के उपयोग पर इन्होनें उर्दू साहित्य की अपनी रचनाओं में एक अलग महत्व बनाया और अपनी साहित्यिक रचनाओं के दम पर भारतीय साहित्य शैली को एक अलग पहचान प्रदान किया !
रचनायें
- नग्म-ए-साज
- गजलिस्तान
- शेरिस्तान
- रूप
- धरती की करवट
- हजार दास्तान
- जुगुनू
- आंधीरात
- परछाइयॉ
- तरान-ए-इश्क
- रम्ज व कायनात
- इत्यादि