जन्म – 31 जुलाई 1880
जन्म स्थान – लमही (वाराणसी उ०प्र०) पिता – अजायब राय मृत्यु – 1936 |
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जन्म काशी (वाराणसी) के निकट लमही नामक ग्राम में 31 जुलाई 1880ई० को हुआ था ! परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी किसी प्रकार से जीवन यापन चलता था ! इनके पिता अजायब राय डाक मुंशी थे जो की डाक विभाग में नौकरी करके किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करते थे !
जब ये सात वर्ष के थे तभी इनकी माता जी का एवं चौदह वर्ष की अवस्था में पिता जी का देहान्त हो गया ! पिता की मृत्यु के उपरान्त इनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी किन्तु पिता के मृत्यु के उपरांत इनकी आर्थिक समस्या और बढ़ गई और इनके माथे पर रोटी कमाने की चिन्ता बहुत बढ़ गई, आर्थिक समस्या के साथ ट्यूशन के माध्यम से इन्होनें अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं कुछ समय के पश्चात आपका दूसरा विवाह शिवरानी देवी के साथ हुआ !
विवाह के बाद इन्होनें स्कूल में मास्टरी की नौकरी कर ली नौकरी के साथ साथ स्नातक (बी०ए०) उत्तीर्ण किये अपने इन्ही संघर्षो के रास्तें पर चलते हुए आप सन 1921ई० में गोरखपुर में स्कुलो के डिप्टी इंस्पेक्टर बन गये, किन्तु उसी दरमियाँन गाधी जी ने विगुल बजाया की सरकारी नौकरी से इस्तीफा दो, इस बात का प्रभाव प्रेमचंद पर पढ़ा और इन्होनें अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और कुछ दिनों के बाद पुनः कानपुर के मारवाड़ी स्कुल में कुछ दिनों तक अध्यापन का कार्य किया फिर “काशी विद्यापीठ” में प्रधान अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए, यही पर इन्होनें अनेक पत्र पत्रिकाओ का सम्पादन प्रारंभ किया और स्वयं एक प्रेस की स्थापना किये, कुछ समय तक आप फिल्मी दुनिया में भी नौकरी किये थे जो की आठ हजार रूपये प्रतिमाह के दर से था समस्त रचनाओ में ग्रामीण भारत का जो दृश्य देखने को मिलता है वाकई में हिंदी साहित्य के लिए वह एक अनमोल तोहफा है ! जलोदर रोग के कारण 8 अक्टूबर 1936 ई० लमही में (वाराणसी) में इस साहित्य सम्राट का निधन हो गया
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साहित्यक परिचय –
साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद की बचपन से रूचि थी और इनकी यह प्रतिभा जन्म जात थी अपने आरम्भ के दिनों में ये “नवाबराय” के नाम से लेखन का कार्य करते थे और किसी नाम के द्वारा उर्दू भाषा से विभिन्न कहानियों एवं उपन्यास का लेखन किया, इनकी क्रांतिकारी रचना “सोजेवतन” ने स्वाधिनता संग्राम के दौरान ऐसा हलचल मचाया की अंग्रेजो को इनकी यह रचना जब्त करनी पड़ी ! इसके बाद में में इन्होनें प्रेमचंद नाम रखकर हिंदी साहित्य की अनेक पुस्तकों की रचना की जिनमे एक दर्जन उपन्यास तथा तीन सौ कहानिया लिखी इसके अलावा इन्होनें “माधुरी” तथा “मर्यादा” पत्रिकाओ का संपादन किया, तथा “हंस” व “जागरण” नामक पत्र का प्रकाशन किया भारतीय साहित्य जगत में इन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि से नवाजा गया !
रचनाये –
इन्होनें अपनी रचनाओं में जनता की बात जनता की भाषा में कहकर तथा अपने कथा साहित्य के माध्यम से तत्कालीन एवं माध्यम वर्ग का सच्चा चित्र प्रस्तुत कर के प्रेमचंद जी भारतीयों के दिल में समां गये !
उपन्यास –
“गोदान” , “कर्मभूमि”, “कायाकल्प”, “निर्मला”, “प्रतिज्ञा”, “प्रेमाश्रम”, “वरदान”, “सेवासदन”, “रंगभूमि” , “गबन”
नाटक –
“कर्बला”, “प्रेम की वेदी”, “संग्राम और रूठी रानी”
जीवन चरित्र –
“कलम”, तलवार और त्याग”, “दुर्गादास”, “महात्मा शेखसादी”, “राम चर्चा”,
निबंध –
“कुछ विचार”
सम्पादित –
“गल्प रत्न और गल्प समुच्चय”