जन्म – 1535 विक्रम संवत
जन्म स्थान – रुनकता पिता – रामदास मृत्यु – 1640 विक्रम संवत |
हिन्दी साहित्य के कवियों में भक्तिकाल के कवियों को सर्वक्ष्रेष्ठ माना जाता है, उनमें भी अष्टछाप के कवियों में भी सूरदास जी श्रेष्ठ हैं, सूरदास के जन्म के सन्दर्भ में कोई प्रमाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है कई प्रकार के ग्रंथो में प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इनके जन्म की पुष्टि स्वरुप 1535 विक्रम संवत को माना जाता है ! आईने अकबरी के आधार पर इनके पिता का नाम रामदास था ! इनके जन्म एवं स्थान को एक पद्य के माध्यम से समेटा गया है !
रामदास सूत सूरदास ने, जन्म रुनकता में पाया !
गुरु बल्लभ उपदेश ग्रहण कर , कृष्णभक्ति सागर लहराया !!
कहा जाता है कि सूरदास जन्मांध थे और ये भगवद भक्ति में सदैव लीन रहते थे ! अपनी भक्तिमय इच्छा के कारण इन्होने अपने पिता की आज्ञा प्राप्त करके यमुना तट के गौउघाट पर रहने लगे ! एक बार वृन्दावन धाम की यात्रा के दौरान इनकी भेट महाप्रभु बल्लभाचार्य से हो जाती है और उन्हीं के सानिध्य में सूरदास ने भक्ति की दीक्षा प्राप्त की एवं महाप्रभु इन्हें अपने साथ गोवर्धन पर्वत स्थित मंदिर ले जाते है, जहा ये श्रीनाथ जी की सेवा करने लगे, और यह प्रत्येक दिन नये पद बनाकर इकतारे के माध्यम से उसका गायन करने लगे, विदवानो का मत है कि सूरदास ने सवालाख पदों की रचना की थी, हिंदी साहित्य में इतनी अधिक पदों की रचना इन्हें सर्वश्रेष्ठ बनाती है ! भगवद-भक्ति के समय ही इनकी जीवन लीला 1640 विक्रमसंवत् को समाप्त हो गई !
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साहित्यिक परिचय –
महाकवि सूरदास जी ने श्रृंगार रस के दोनों पहलुओ संयोग एवं विप्रलम्भ का इतना उत्कृष्ट समावेश किया है, इनके बाल्यकाल का वर्णन चित्ताकर्षक रूप से उल्लास, उत्कंठा आदि भाव स्वाभाविक रूप से समावेश प्रतीत होते है ! “भ्रमर गीत” सूरदास की अनूठी कल्पना है इसमे इन्होने ज्ञान और योग के आडम्बर को दूर कर प्रेम और भक्ति के महत्व को प्रकशित किया है ! यह ब्रज भाषा के एक सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते है, इन्होने कृष्ण के जन्म से किशोरावस्था का चरित्र चित्रण किया है
रचनाये –
इनकी रचनाये भक्तिकाल की श्रेष्ठ रचनाओ में से एक है, ये श्रृंगार के अप्रतिम कवि है ! वास्तव में कृष्ण भक्त कवियों में सूर की रचना श्रीमद्भागवत – जैसा उत्कृष्ट स्थान पाती है,सूरदास ने उस समय के समाज की विभिन्न परिस्थितियों को समझकर समाज के सामने ईश्वर की गाथा का ऐसा गान किया जिसके फलस्वरूप वे आगे चलकर भगवान के लोक रक्षक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करते है और ईश्वर के प्रति इतनी शालीनता,सरलता तथा स्वाभाविक रचना के कारण हिंदी साहित्य का कोई भी कवि इनके समकक्ष नहीं है !
सूरसागर –
सूरदास के पदों का सर्वाधिक संग्रह सूरसागर में मिलता है जो कि इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ है, इस ग्रन्थ में इन्होने कृष्ण की लीलाओं का बखूबी वर्णन किया है यह इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ है ,
साहित्यलहरी –
यह इनका दूसरा प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ है ! साहित्यलहरी में भी सूरदास जी ने पद्य लाइनों के मध्यम से विभिन्न प्रकार की भक्तिमय रचनाये प्रस्तुत किये है !
अन्य ग्रन्थ –
सूर-सारावली, गोवर्धन लीला, नाग लीला, पद संग्रह, सूर पच्चीसी आदि !