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Mirabai Biography // Mirabai Jeevan Parichay
जन्म – 1498 ई०
जन्म स्थान – चौकड़ी, मेवाड़ (राजस्थान)
पिता – रत्नसिंह
मृत्यु – 1546 ई०
पायो जी म्हैं तो राम रतम धन पायो
कृष्ण के प्रेम में पागल होकर लोगों को कृष्ण भक्ति से परिचित करने वाली महान कवयित्री मीराबाई का जन्म 1498 ई० में मेवाड़ के चौकड़ी में हुआ, ये राज घराने में जन्मी हुई थी इनके पिता राजा रत्नसिंह थे, बाल्यकाल से ही मीराबाई कृष्ण की भक्ति में लीन थी, इनके बचपन में ही इनकी माता का देहान्त हो जाता है जिसके बाद यह सर्वाधिक समय अपने दादा राव दूदा जी के पास रहती थी, इनके दादा जी बहुत ही धार्मिक एवं लोकप्रिय व्यक्ति थे उनके अन्दर सज्जनता का गुण विघमान था और इन्हीं सब कारणों से मीराबाई के उपर इनके दादा जी का प्रभाव लगभग पूरा का पूरा पड़ा, विवाह योग्य होने पर मीराबाई का विवाह चितौड़ के महाराजा राणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज के साथ हुआ, विवाह के कुछ ही वर्षों के बाद इनके पति की मृत्यु हो गयी, जिससे इनका सम्पूर्ण समय अब कृष्ण भक्ति में व्यतीत होने लगा मीरा श्रीकृष्ण को अपना पति मानती थी जिसकी वजह से वे हमेशा कृष्ण के पद गाती, साधु-संतो के साथ उनकी हर लीलाओं का वर्णन करती रहती थी ! किन्तु राजपरिवार से होने के कारण राजघराने के लोग इनके इन सब कार्यों से खिन्न रहते थे और कई बार मीरा को विष देकर मारने की भी कोशिश की गयी किन्तु कृष्ण की प्रियशी होने के कारण ये हमेशा बच गयी !
राजघराने से बार- बार परेशान किये जाने के कारण मीरा वृंदावन धाम चली गयी ! मीरा बाई के जाने के बाद इनकी लोकप्रियता से अभिभूत होकर राणा ने इन्हें वापस आने के लियें कई सन्देश दिए किन्तु मीरा वापस नहीं आयी इन्होंने अपने सारे सांसारिक बंधन को तोड़ लिया, मीराबाई जहाँ भी जाती वहीँ पर इन्हें देवी के जैसा सम्मान मिलता और ये लोगों के बीच में कृष्ण भक्ति की गुणगान किया करती थी !
इनका भक्तिकाल बहुत ही उथल- पुथल भरा रहा क्योकिं इसी समय में बाबर का हिन्दुस्तान पर हमला हो गया जिसके कुछ ही दिनों के बाद बाबर एवं राणा संग्राम सिंह के मध्य खानवा युद्ध में हुईं जिसमें राणा सांगा की पराजय हुई, और यहीं से हिदुस्तान ही धरती पर हिंदुत्व का पतन आरम्भ हो गया, और देश में धर्म और संस्कृति को बचाना एक बड़ी चुनौती बन गया ! इन सब समस्याओं के होने के बावजूद भी ये कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करती रहीं कहा जाता है कि मीरा एक पंक्ति “हरि तुम हरो जन की पीर” को गाते- गाते द्वारिका में कृष्ण की मूर्ति से लिपटकर उसी में विलीन हो गयी !
साहित्यिक परिचय –
इनके काव्य रचना में इनका कृष्ण भक्ति प्रेम इनके हृदय की सरलता तथा निश्चलता का स्पष्ट रूप मिलता है, भक्ति-भजन ही इनकी काव्य रचना है, इनकी प्रत्येक पंक्ति सच्चे प्रेम से परिपूर्ण है, इनकी इसी प्रेमपूर्ण शैली की वजह से लोग आज भी इनकी पंक्तिया उतनी ही तन्मयता से गाते है !
रचनायें –
इनकी समस्त रचनाओं में इनके हृदय का प्रेम देखने को मिलता है
नरसी जी का मायरा,
राग गोविन्दा,
गीत गोविंन्द का टिका,
राग सोरठ के पद,
मीराबाई की मलार,
गरबा गीत,
राग विहाग
प्रसिद्ध कृति –
“मीरा पदावली”