भारत-अमेरिका के मध्य 2+2 वार्ता
6 सितंबर, 2018 को भारत और अमेरिका के मध्य टू प्लस टू (2+2) वार्ता संपन्न हुई। इस वार्ता में भारत की ओर से विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तथा अमेरिका की ओर से रक्षा मंत्री जिम मैटिस और विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने भाग लिया था।
ये वार्ता अब प्रत्येक वर्ष होगी। दोनों देश बारी-बारी से इसकी मेजबानी करेंगे।
जब दो देशों के दो-दो मंत्री वार्ता में शामिल होते हैं, तो विदेश नीति की शब्दावली में इसे 2+2 वार्ता कहा जाता है। सामान्य तौर पर 2+2 वार्ता में दोनों देशों की ओर से विदेश और रक्षा मंत्री भाग लेते हैं।
वर्ष 2010 में भारत और जापान के मध्य इस तरह की वार्ता हो चुकी है।
पृष्ठभूमि
भारत और अमेरिका के मध्य 2+2 वार्ता का निर्णय जून, 2017 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच हुई बैठक में किया गया था।
इस वार्ता का महत्व इस बात में समझा जा सकता है कि अमेरिका इस तरह का साझा विमर्श अभी तक ऑस्ट्रेलिया और जापान से करता है। इन देशों को वह अपने रणनीतिक मामलों के लिए अहम मानता है।
उद्देश्य
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव तथा इस प्रभाव को रोकने की अमेरिका की जद्दोजहद ने दोनों देशों के मध्य संबंधों में तीव्रता लाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
इसके अतिरिक्त परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता, आतंकवाद, अफगान नीति, रक्षा एवं सैन्य सहयोग जैसे मुद्दों पर आपसी समझ और सहयोग बढ़ाना है।
वार्ता के प्रमुख बिंदु
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत को सदस्यता दिलाने के लिए अमेरिका ने सहमति व्यक्त की है। दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी आगे बढ़ रही है। अमेरिका भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति करने वाले देश के तौर पर उभर रहा है।
अफगान नीति के संदर्भ में दोनों ही देश साझा लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। दोनों ने ऐसी नीति का सर्मथन किया है, जिससे अफगानिस्तान के नागरिकों का सर्वोत्तम हित हो सके।
भारत और अमेरिका की तीनों सेनाओं के बीच पहली बार अगले वर्ष भारत में संयुक्त सैन्य अभ्यास के आयोजन का फैसला किया गया।
दक्षिणी चीन सागर के संदर्भ में दोनों पक्षों का मत है कि समुद्री क्षेत्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित होना चाहिए और समुद्री विषयों के शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में काम करना चाहिए।
दोनों देशों के मध्य महत्वपूर्ण सुरक्षा समझौते COMCASA (Communication Compatibility and Security Agreement) पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के बाद अमेरिका संवेदनशील सुरक्षा तकनीकी भारत को बेच सकेगा। भारत पहला ऐसा गैर-नाटो देश होगा, जिसे अमेरिका यह सुविधा देने जा रहा है।
आतंकवादियों के बारे में सूचना साझा करने के प्रयासों को बढ़ाने और विदेशी आतंकवादियों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संकल्प 2396 को लागू करने के अपने इरादे की घोषणा मंत्रियों ने की है।
भारत के लिए इस बैठक में H1 वीजा का मुद्दा उठाना महत्वपूर्ण था। यह वीजा भारत के आईटी प्रोफेशनल्स पर प्रभाव डालता है। भारत ने उम्मीद जताई है कि अमेरिका भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए कोई निर्णय लेगा।
ईरान से कच्चे तेल के आयात पर अमेरिकी प्रतिबंध और रूस से एस-400 वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली खरीदने की भारत की योजना जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत चल रही है।