Child Devolpment 15 Important Questions
बाल विकास से सम्बन्धित 15 महत्वपूर्ण प्रश्नों का तीसरा सेट उपलब्ध करा रहें हैं , जो की आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में पूंछे जायेंगें, अतः आप सभी अपनी परीक्षा की तैयारी को और सुगम बनाने के लिये इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें !
Imp. CTET, UPTET, RTET, KTET,MPTET, BIHAR TET, UKTET etc
शारीरिक विकास एवं अधिगम
- शारीरिक विकास के अंतर्गत बालक के शरीर के बाह्रा एवं आन्तरिक अवयवों का विकास शामिल है
- शरीर के बाह्रा परिवर्तन जैसे ऊंचाई, शारीरिक अनुपात में वृध्दि इत्यादि एसे शरीरिक विकास है, जिन्हें स्पष्ट देखा जा सकता है, किन्तु शरीर के आंतरिक अवयवों के परिवर्तन बाह्रा रूप से दिखाई तो नहीं पड़ते, किन्तु शरीर के भीतर इनका समुचित विकास होता है !
- प्रारम्भ में शिशु अपने हर प्रकार के कार्यों के लिये दूसरों पर निर्भर रहता है, धीरे-धीरे विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप वह अपनी आवश्कताओं की पूर्ति में सक्षम होता है !
- सभी बच्चों का स्वस्थ शारीरिक विकास सभी प्रकार के विकास की पहली शर्त है इसके लिये आवश्कताएं जैसे- पौष्टिक आहार, शारीरिक व्यायाम तथा अन्य मनोवैज्ञानिक- सामाजिक जरुरतो पर ध्यान देना आवश्यक है !
- शारीरिक वृध्दि एवं विकास के बारे में शिक्षकों को प्रर्याप्त जानकारी होनी चाहियें ! इसी जानकारी के आधार पर वह बालक के स्वस्थ्य अथवा इससे सम्बन्धित अन्य समस्याओं से अवगत हो सकता हैं !
- बालक की वृध्दि एवं विकास के बारे में शिक्षकों क प्रर्याप्त जानकारी इसलिए भी रखना अनिवार्य है, क्योकि बच्चों की रुचियाँ, इच्छाएं दृष्टीकोण एवं एक तरह से उसका पूर्ण व्यवहार शारीरिक वृध्दि एवं विकास पर निर्भर करता है !
- बच्चों की शारीरिक वृध्दि एवं विकास के सामान्य ढाँचे से परिचित होकर अध्यापक यह जान सकता है की एक विशेष आयु स्तर पर बच्चों से क्या आशा की जा सकती है !
- शारीरिक वृध्दि एवं विकास पर बालक के आनुवंशिक गुणों का प्रभाव देखा जा सकता है ! इसके अतिरिक्त बालक के परिवेश एवं उसकी देखभाल का भी उसकी शारीरिक वृध्दि एवं विकास पर प्रभाव पड़ता है ! यदि बच्चे को पर्याप्त मात्र में पोषण आहार उपलब्ध नहीं हो रहे है, तो उसके विकास की सामान्य गति की आशा कैसे की जा सकती है !
- शारीरिक वृध्दि एवं विकास की प्रक्रिया व्यक्तित्व के उचित समायोजन और विकास के मार्ग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है !
मानसिक विकास एवं अधिगम
- संज्ञानात्मक या मानसिक विकास से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यताओं एवं क्षमताओं में वृध्दि और विकास से है जिनके परिणामस्वरूप वह अपने निरन्तर बदलते हुए वातावरण में ठीक प्रकार से समायोजन करता है और विभिन्न प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का पर्याप्त उपयोग कर पाता है !
- कल्पना करना, स्मरण करना, विचार करना, निरिक्षण करना, समस्या-समाधान करना, निर्णय लेना इत्यादि की योग्यता संज्ञानात्मक विकास के फलस्वरूप ही विकसित होते हैं !
- संज्ञानात्मक विकास के बारे में शिक्षकों को पर्याप्त जानकारी इसलिए होनी चाहिए, क्योकिं इसके अभाव में वह बालकों की इससे सम्बंधित समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगा !
- यदि कोई बालक मानसिक रूप से कमजोर है तो इसके क्या कारण है, यह जानना उसके उपचार के लिये आवश्यक है !
- संज्ञानात्मक विकास के बारे में प्रर्याप्त जानकारी होने से विभिन्न आयु स्तरों पर पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं तथा अनुभवों के चयन और नियोजन में सहायता मिलती है !
- जन्म के समय बालक में इस प्रकार की योग्यता का आभाव होता है, धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें मानसिक विकास की गति भी बढती रहती है !
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