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Child Devolpment Important Theory
बाल विकास से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सिध्दान्त उपलब्ध करा रहें हैं , जो की आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में पूंछे जायेंगें, अतः आप सभी अपनी परीक्षा की तैयारी को और सुगम बनाने के लिये इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें !
Imp. CTET, UPTET, RTET, KTET,MPTET, BIHAR TET, UKTET etc
बाल विकास के सिध्दान्तों का शैक्षिक महत्व
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- बाल विकास के सिध्दान्तों के ज्ञान के फलस्वरूप शिक्षकों क बालकों की स्वभावगत विशेषताओ, रुचियों एवं क्षमताओं के अनुरूप सफलतापूर्वक अध्यापन में सहायता मिलता है !
- बाल विकास के सिध्दांतों से शिक्षकों को यह पता चलना है कि वृध्दि और विकास की गति और मात्रा सभी बालकों में एक जैसी नहीं पाई जाती ! अत: व्यक्तिगत विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए सभी बालकों से हर प्रकार के विकास की समान उम्मीद नहीं की जा सकती !
- निचली कक्षाओं में शिक्षण की खेल-पध्दति मूलरूप से वृध्दि एवं विकास के मनोवैज्ञानिक सिध्दांतों पर आधारित है !
- बाल विकास के सिध्दांतों से हमें यह जानकारी मिलती है कि विकास की किस अवस्था में बालकों सीखने की प्रवृत्ति किस प्रकार की होती है ? यह उचित शिक्षण-विधि अपनाने में शिक्षकों की सहायता करता है !
- बालकों की वृध्दि और विकास के सिध्दानों से बालकों के भविष्य में होने वाली प्रगति का अनुमान लगाना काफी हद तक संभव होता है ! इस तरह बाल विकास के सिध्दान्तोंकी जानकारी बालकों के मार्गदर्शन, परमर्श एवं निर्देशन में सहायक होकर उनके भविष्य निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाती है !
- वंशानुक्रम और वातावरण दोनों बालक की वृध्दि और विकास के लिये उत्तरदायी है ! यह सिध्दान्त हमें बताता है कि बालक की वृध्दि और विकास की प्रक्रिया में वंशानुक्रम और वातावरण दोनों को समान महत्व दिया जाना आवश्यक है !
- वृध्दि और विकास की सभी दिशाए अर्थात् विभिन्न पहलू जैसे – मानसिक विकास, शारीरिक विकास, संवेगात्मक विकास और सामाजिक विकास आदि परस्पर एक-दुसरे से सम्बंधित हैं ! इस बात का ज्ञान शिक्षकों और अभिभावकों को बालक के सर्वागीण विकास पर ध्यान देने के लिये प्रेरित करता है !
- आने वाले समय में वृध्दि और विकास को ध्यान में रखते हुए क्या-क्या विशेष परिवर्तन होगें ? इस बात का ज्ञान भी बाल विकास के सिध्दांतों आधार पर हो सकता है ! यह ज्ञान न केवल अध्यापकों बल्कि माता-पिता को भी विशेष रूप से तैयार रहने के लिये एक आधार प्रदान करता है तथा बच्चों की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में उन्हें सहायता मिलती है !
- बाल विकास के सिध्दांतों के ज्ञान से बालक की रुचियों, अभिवृत्तियों क्षमताओं इत्यादि के अनुरूप उचित पाठ्यक्रम के निर्धारण एवं समय-सारिणी के निर्माण में सहायता मिलती है !
- बालक के व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास के लिये यह आवश्यक है कि उसके व्यवहार की जानकारी शिक्षक को हो !
- बालक के व्यवहार के बारे में जानने के बाद उसकी समस्याओं का समाधान करना आसान हो जाता है !
- किस आयु वर्ग या अवस्था विशेष में बालक के विकास का क्या सामान्य स्तर होना चाहिए ? इस बात के ज्ञान से अध्यापक को अपने शिक्षण के उचित नियोजन में पूरी सहायक मिलती है ! विकास स्तर की दृष्टि से वह बालकों को सामान्य, अति सामान्य से नीचे जैसी श्रेणियों में विभाजित कर सकता है तथा फिर उनकी शिक्षा एवं समायोजन व्यवस्था को उन्हीं के उपयुक्त रूप में ढालने का प्रयत्न कर सकता है !
- वृध्दि का विकास के विभिन्न आयामों में से किसी एक आयाम में बहुत अधिक तथा किसी दूसरे में उपेक्षित न रह जाए – इस बात को ध्यान में रखकर सर्वागीण विकास के लिये प्रयत्नरत रह सकता है !
- बाल विकास का अध्ययन शिक्षक को इस बात स्पष्ट जानकारी दे सकता है कि बालक की शक्तियों, योग्यताओं, क्षमताओं तथा व्यवहार एवं व्यक्तिगत गुणों के विकास में आनुवंशिकी तथा वातावरण किस सीमा तक किस रूप में उत्तरदायी ठहराए जा सकते है ? यह जानकारी शिक्षक को अपने उत्तरदायित्वों का सही ढंग से पालन करने में सहायक होती है
- सामाजिक आर्थिक स्थिति बालक को सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का प्रभाव भी उसके विकास पर पड़ता है ! निर्धन परिवार के बच्चे को विकास के अधिक अवसर उपलब्ध नहीं होते ! अच्छे विद्यालय में पढ़ने, सांस्कृतिक कार्यकर्मों में भाग लेने इत्यादि का अवसर गरीब बच्चों को नहीं मिलता, इसके कारण उनका विकास सन्तुलित नहीं होता ! शहर के अमीर बच्चों को गाँवों के गरीब बच्चों की तुलना में बेहतर सामाजिक एवं सांस्कृतिक वातावरण मिलता है, जिसके कारण उनका मानसिक एवं सामाजिक विकास स्वाभाविक रूप से अधिक होता है !
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