वर्ष 2018 का ज्ञानपीठ पुरस्कार
- प्रख्यात अंग्रेजी लेखक अमिताभ घोष को साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए वर्ष 2018 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है। ज्ञानपीठ पुरस्कार की चयन समिति की आज यहां बैठक में घोष को 54वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने का निर्णय लिया गया।
घोष को ‘शैडो लाइन्स’ उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। वह पद्मश्री से नवाजे जा चुके हैं।
- पुरस्कार में क्या मिलेगा?
- देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार के रूप में अमिताव घोष को बतौर पुरस्कार 11 लाख रूपए की राशि, वाग्देवी की प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र दिया जाएगा
- ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह अंग्रेजी के पहले लेखक हैं.
- ज्ञानपीठ ने बताया कि शुक्रवार को प्रतिभा रॉय की अध्यक्षता में आयोजित ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में अंग्रेजी के लेखक अमिताव घोष को साल 2018 के लिए 54वां ज्ञानपीठ पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया.
- ज्ञानपीठ के सूत्रों ने बताया कि अंग्रेजी को तीन साल पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार की भाषा के रूप में शामिल किया गया था और अमिताव घोष देश के सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाले अंग्रेजी के पहले लेखक हैं.
- पुरस्कार की घोषणा किए जाने के बाद प्रतिक्रिया देते हुए अमिताभ घोष ने ट्विटर पर लिखा कि, मैं सम्मानित और विनम्र महसूस कर रहा हूं। कार्यक्रम में अमिताभ घोष ने कहा था कि 30 साल पहले जब आप लेखक बनना चाहते थे तो इसकी हंसी उड़ाई जाती थी। कारण कि हम जैसे लोग लेखक नहीं बनना चाहते थे। हम नौकरशाह या बैंक प्रबंधक बनना चाहते थे। लेकिन बाद के बरसों में चीजें बदल गईं।
दी सर्किल ऑफ रीज़न (1986) दी शैडो लाइन्स (1988) दी कलकत्ता क्रोमोजोम (1995) दी ग्लास पैलेस (2000) दी हंग्री टाइड (2004) सी ऑफ पॉपिस (2008) रिवर ऑफ स्मोक (2011) फ्लड ऑफ फायर (2015)
वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा
- ज्ञानपीठ पुरस्कारमें प्रतीक स्वरूप दी जाने वाली वाग्देवी का कांस्य प्रतिमा मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मंदिर में स्थित प्रतिमा की अनुकृति है। इस मंदिर की स्थापना विद्याव्यसनी राजा भोज ने १०३५ ईस्वी में की थी। अब यह प्रतिमा ब्रिटिश म्यूज़ियम लंदन में है। भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसको ग्रहण करते समय शिरोभाग के पार्श्व में प्रभामंडल सम्मिलित किया है। इस प्रभामंडल में तीन रश्मिपुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण द्वार (कंकाली टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं। हाथ में कमंडलु, पुस्तक, कमल और अक्षमाला ज्ञान तथा आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि के प्रतीक हैं
- अब तक ज्ञानपीठ से पुरस्कृत कुछ महान व्यक्तित्व
- पहला पुरस्कार- 1965 में जी.शंकर कुरूप को मलयालम भाषा लेखन ( पुस्तक-ओटक्कुषल) के लिए दिया गया।
- द्वितीय पुरस्कार 1966 में ताराशंकर बंदोपाध्याय को गणदेवता पुस्तक( बांग्ला भाषा) के लिए प्रदान किया गया।
- हिन्दी का पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968 में सुमित्रानन्दन पंत को चिदंबरा नामक कृति के लिए दिया गया।
- रामधारी सिंह दिनकर को सन 1972 में उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 2016 का ज्ञानपीठ पुरस्कार शंख घोष को बांग्ला लेखन में दिया गया।
- 2017 का ज्ञानपीठ हिन्दी लेखन में कृष्णा सोबती को दिया गया।
- 2018 में यह पुरस्कार अमिताब घोष को अंग्रेजी लेखन मे दिया जायेगा।
- अंग्रेजी लेखन में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होनें वाले अमिताव घोष पहले लेखक होंगे।
कृपया इस लेख को शेयर अवश्य करें