जन्म – 26 सितम्बर 1949
जन्म स्थान – बरदौवा, नगांव असम
पिता – कुसूम्बर भुयाँ
मृत्यु – 1558
असमिया भाषा के अत्यंत प्रशिद्ध कवि श्री मन्त शंकर देव का जन्म 26 सितम्बर 1449 ई० में बरदौवा, नौगांव असम में हुआ था इनके पिता का नाम कुसूम्बर भुयाँ तथा माता का नाम सत्य संध्या था ! विख्यात बारो भुयाँ में जन्मे इस महापुरुष ने बचपन में ही अपने माता – पिता को खो दिया ! तब इनकी अपनी दादी खेरसूती ने इनकी परवरिस और बाल्यकाल से इनका देखभाल किया, इस प्रकार अभिभावक विहीन शिशु शंकर देव धीरे – धीरे किशोर उम्र की ओर बढ़ चला ! किन्तु पढाई में इनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी वह ज्यादातर समय खेल कूद में व्यस्त रहते थे !
आखिरकार उनके दादी माँ ने काफी समझा बुझाकर बारह वर्ष के उम्र में गुरु महेंद्र कन्दली के गुरुकुल में इन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज दिया, बाल्यकाल से प्रतिभाशाली शंकर देव ने बहुत ही कम समय में काफी शिक्षा प्राप्त कर ली और अपने अन्य सहपाठियों के मध्य ये काफी तीव्र बुद्धि के बालक के रूप में अपना स्थान बनाया ! बहुत जल्द ही भाषा का ज्ञान होने से इन्होने मात्राओं के ज्ञान प्राप्त किये बिना एक कविता की रचना की
करतल कमल कमलदल नयन I
भवदय दहन गहन बन शयन II
खरतर बरशत हतदश बदन I
खगचर नगधर फणधर शयन II
नपर- नपर पर शतरत गमय I
सभय मभय मम हरशत तय II
जगदघ मप हर भव भय तरन I
परपद लयकर कमलज नयन II
अर्थ – जिनके हाथ कमल जैसे हो तथा नैन कमल की पंखुरिओं जैसा !
वो मनुष्य को हर विपत्ति से बचाकर उनके हृदय में विराजते हैं !
इस प्रकार बड़े कम दिनों में ही शंकर देव चारों वेद, चौदह शास्त्र और अट्ठारह पुराण शास्त्रों का अध्ययन किया, शंकर देव ने 32 वर्ष की उम्र में विरक्त होकर प्रथम तीर्थ यात्रा आरम्भ की और सनातन गोस्वामी से भी शंकर का साक्षात्कार हुआ ! तीर्थ यात्रा से लौटने के पश्चात शंकर देव ने 54 वर्ष की उम्र में कालिंदी से विवाह किया शंकर देव ने जगदीश मिश्र के स्वागतार्थ “महानाटक” के अभिनय का आयोजन किया आश्चर्य की बात तो यह है कि गुरुदेव दूसरी बार जब भ्रमण पर गए थे तब वह 1997 की अवस्था को पूर्ण कर रहे थे ! असम और असोनियाओ के लिए जो महान अवतंन दे गए है ! उसी पर भी असमिया भाषा, साहित्य, संस्कृति और समाज की इमारत आज भी मजबूत से खड़ी है ! आज भी असम वासी अपना अटूट अपने वरदान के भाती अपने साथ लिए आज भी गर्व करते हैं इन्हीं सर्वगुणाकार गुरुजन ने 120 वर्ष की आयु में 1568 ई० को कूच बिहार में अपनी अन्तिम सांस ली और शरीर संवाण किया !
साहित्यिक परिचय-
इनकी रचनाएँ असम भाषा से जुड़ी हुयी है, इन्होने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त विभिन्न प्रकार की सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया ! अपने द्वारा रचित विभिन्न प्रकार के नाटकों के माध्यम से ये समाज को सीख देने का कार्य करते थे , जिससे की समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों का अंत हो सके !
रचनाएँ-
नाटक
- पत्नी प्रसाद
- कालियदमन
- केलिगोपाल
- रुक्मिणीहरण
- पारिजात हरण
- राम विजय
काव्य रचना-
- हरिश्चन्द्र उपाख्यान
- अजामिल उपाख्यान
- रुक्मिणी हरण काव्य
- बलिछलन
- अमृत मन्थन
- गजेन्द्र उपाख्यान
- कुरुक्षेत्र
- गोपी-उद्धव संवाद
- कृष्ण प्रयाण – पाण्डव निर्वारण
इत्यादि !