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Child Devolpment 15 Important Questions
बाल विकास से सम्बन्धित 15 महत्वपूर्ण प्रश्नों का चौथा सेट उपलब्ध करा रहें हैं , जो की आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में पूंछे जायेंगें, अतः आप सभी अपनी परीक्षा की तैयारी को और सुगम बनाने के लिये इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें !
Imp. CTET, UPTET, RTET, KTET,MPTET, BIHAR TET, UKTET etc
- संज्ञानात्मक या मानसिक विकास से तात्पर्य बालक की उन सभी मानसिक योग्यताओं एवं क्षमताओं में वृध्दि और विकास से है जिनके परिणामस्वरूप वह अपने निरन्तर बदलते हुए वातावरण में ठीक प्रकार से समायोजन करता है और विभिन्न प्रकार की समस्यओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का प्रर्याप्त उपयोग कर पाता है !
- जन्म के समय बालक में इस प्रकार को योग्यता का अभाव होता है, धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ-साथ उसमें मानसिक विकास की गति भी बढ़ती रहती है !
- किस विधि और तरीके से पढ़ाया जाए, सहायक सामग्री तथा शिक्षण साधन का प्रयोग किस तरह किया जाए,शौक्षणिक वातावरण इस प्रकार का हो ? इन सबके निर्धारण में संज्ञानात्मक विकास के विभिन्न पहलुओं की जानकारी शिक्षकों के लिये सहायक साबित होती है !
- विभिन्न अवस्थाओं और आयु-स्तर पर बच्चों की मानसिक वृध्दि और विकास को ध्यान में रखने हुए उपयुक्त पाठ्य-पुस्तकें तैयार करने में भी इससे सहायता मिल सकती है !
- संज्ञानात्मक विकास के बारे में शिक्षकों को प्रर्याप्त जानकारी इसलिए होनी चाहिए,क्योकिं इसके अभाव में वह बालकों की इससे सम्बंधित समस्याओं का समाधान नहीं कर पाएगा !
- यदि कोई बालक मानसिक रूप से कमजोर है, तो इसके क्या कारण है, यह जानना उसके उपचार के लिये आवश्यक है !
- संवेग जिसे भाव भी कहा जाता है का अर्थ होता है एसी अवस्था जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है ! भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, स्नेह, विषाद इत्यादि संवेग के उदाहरण है ! बालक में आयु बढ़ने के आठ ही इन संवेगों का विकास भी होता रहता है !
- संवेगात्मक विकास मानव वृध्दि एवं विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है ! व्यक्ति का संवेगात्मक व्यवहार उसकी शारीरिक वृध्दि एवं विकास को ही नहीं बल्कि बौध्दिक, सामाजिक एवं नौतिक विकास को भी प्रभावित करता है !
- प्रत्येक संवेगात्मक अनुभूति व्यक्ति में कई प्रकार के शारीरक और शरीर सम्बन्धी परिवर्तनों को जन्म देती है !
- बालक के संतुलन विकास में उसके संवेगात्मक विकास की अहम भूमिका होती है !
- संवेगात्मक विकास के दृष्टिकोण से बालक के स्वाश्थ्य एवं शारीरिक विकास पर पूरा-पूरा ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है !
- विद्यालय के परिवेश और क्रिया-कलापों को उचित प्रकार से संगठित कर अध्यापक बच्चों के संवेगात्मक विकास में भरपूर योगदान से सकते है !
- बालकों को शिक्षकों का प्रर्याप्त सहयोग एवं स्नेह मिलता उनके व्यक्तित्व के विकास के दृष्टीकोण से आवश्यक है ! इसी प्रकार यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि बालक के स्वाभिमान को कभी ठेस न पहुँचे ! इस तरह संवेगात्मक विकास के कई पहलुओं को ध्यान में रखकर ही बालक का सर्वागीण विकास किया जा सकता है !
- एक नवजात शिशु एसे कार्य करने में अक्षम होता है ! शारीरिक वृध्दि एवं विकास के साथ ही आयु उम्र बढ़ने के साथ उसमें इस तरह की योग्यताओं का भी विकास होने लगता है !
- क्रियात्मक विकास बालक के शारीरिक विकास, स्वस्थ रहने, स्वावलम्बी होने एवं उचित मानसिक विकास में सहायक होता है !
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