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Child Devolpment Important Theory for CTET,UPTET,UKTET,RTET,PTET,BIHAR TET

Child Devolpment  Important Theory

बाल विकास से सम्बन्धित  महत्वपूर्ण  सिध्दान्त उपलब्ध  करा रहें हैं जो की आगामी शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में पूंछे जायेंगेंअतः आप सभी अपनी परीक्षा की तैयारी को और सुगम बनाने के लिये इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें !

ImpCTET, UPTET, RTET, KTET,MPTET, BIHAR TET, UKTET etc

वैयक्तिक अंतर का सिध्दान्त
इस सिध्दान्त के अनुसार बालकों का विकास और वृध्दि उनकी अपनी वैयक्तिकता  के अनुरूप होती है ! वे अपनी स्वाभाविक गाती से ही वृध्दि और विकास के विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते रहते है और इसी कारण उनमें पर्याप्त विभिन्नताए देखने को मिलती है ! कोई भी एक बालक वृध्दि और विकास की दृष्टि से किसी अन्य बालक के समरूप नहीं होता ! विकास की इसी सिध्दांत के कारण कोई बालक अत्यंत मेधावी, कोई बालक सामान्य तथा कोई बालक पिछड़ा या मंद होता है !

निरन्तरता का सिध्दांत
इस सिध्दान्त के अनुसार विकास एक न रुकने वाली प्रक्रिया है ! माँ के गर्भ से ही यह प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाता है और मृत्यु – पर्यन्त चलती रहती है ! एक छोटे से नगण्य आकार से अपना जीवन  प्रारम्भ करके हम सबके व्यक्तित्व के सभी पक्षों – शारीरिक, मानसिक, सामाजिक आदि का सम्पूर्ण विकास इसी निरन्तरता के गुण के कारण भली-भांति संपन्न होता रहता है !

विकास क्रम की एकरूपता
इस सिध्दांत बताता है कि विकास की गति एक जैसी न होने तथा पर्याप्त वैयक्तिक अंतर पाए जाने पर भी विकास क्रम में कुछ एकरूपता के दर्शन होते है ! इस क्रम में एक ही जाति विशेष के सभी सदस्यों के कुछ एक जैसी विशेषताए देखने को मिलती है ! उदाहरण के लिये मनुष्य जाति के सभी बालकों की वृध्दि सर की ओर प्रारम्भ होती है ! इसी तरह बालकों के गत्यात्मक और भाषा विकास में भी एक निश्चित प्रतिमान और क्रम के दर्शन किये जा सकते है !

विकास सामान्य से विशेष की ओर चलता है
विकास और वृध्दि की सभी दिशाओं में विशिष्ठ क्रियाओं से पहले उनके सामान्य रूप के दर्शन होते है ! उदाहरण के लिये अपने हाथों से कुछ चीज पकड़ने से पहले बालक इधर से उधर यूँ ही हाथ मारने या फैलाने की चेष्टा करता है ! इसी तरह शुरू में नवजात शिशुनके रोने और चिल्लाने में उसके सभी अंग-प्रत्यंग भाग लेते है, परन्तु बाद में वृध्दि और विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप यह प्रक्रिया उसकी आँखों और वाक्तन्त्र तक सीमित हो जाती है भाषा विकास में भी बालक विशेष शब्दों से पहले सामान्य शब्द हो सीखता है ! पहले वह सभी व्यक्तियों को ‘पापा’ कहकर ही संबोधित करना सीखता है !

वृध्दि एवं विकास की गति की दर एक-सी नहीं रहती
विकास की प्रक्रिया जीवन-पर्यन्त चलती तो है, किन्तु इस प्रक्रिया में विकास की गाति हमेशा एक जैसी नहीं होती ! शैशवावस्था के शुरू के वर्षों में यह गति कुछ तीव्र होती है, परन्तु बाद के वर्षों में यह मन्द पड़ जाती है ! पुन: किशोरावस्था के प्रारम्भ में इस गति में तेजी से वृध्दि होती है, परन्तु यह अधिक समय तह नहीं बनी रहती ! इस प्रकार वृध्दि और विकास की गति में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं ! किसी भी अवस्था में यह एक जैसी नहीं रह पाती

परस्पर सम्बन्ध का सिध्दांत
विकास के सभी आयाम जैसे – शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित है ! इनमें से किसी भी एक आयाम में होने वाला विकास अन्य सभी आयामों में होने वाले विकास को पूरी तरह प्रभावित करने की क्षमता रखता है ! उदाहारण के लिये जिन बहै च्चों में औसत से अधिक वृध्दि होती है, वे शारीरिक और सामाजिक विकास की दृष्टि से भी काफी आगे बढे हुए पाए जाते है ! दूसरी ओर, एक क्षेत्र में पाई जाने वाली न्यूनता दूसरे क्षेत्र में हो रही प्रगति में बाधक सिध्द होती है ! यही कारण की है कि शारीरिक विकास की दृष्टी से पिछड़े बालक संवेगात्मक, सामाजिक एवं बौध्दिक विकास में भी उतने हो पीछे रह जाते है !

एकीकरण का सिध्दान्त
विकास की प्रक्रिया एकीकरण के सिध्दांत का पालन करती है !इसके अनुसार, बालक पहले सम्पूर्ण अंग को और फिर अंग के भागों को चलाना सीखता है ! इसके बाद वह उन भागों में एकीकरण करना सीखता है ! सामान्य से विशेष की ओर बढ़ते हुए विशेष प्रतिक्रियाओं तथा चेष्टाओं को इकट्ठे रूप में प्रयोग में लाना सीखता है !

विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है
एक बालक की अपनी वृध्दि और विकास की गाति को ध्यान में रखकर उसके आगे बढ़ने की दिशा औए स्वरूप के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है ! उदाहरण के लिये, एक बालक की कलाई की हड्डीयों का एक्स किरणों से लिया जाने वाला चित्र यह बता सकता है कि इसका आकार- प्रकार आगे जाकर किस प्रकार का होगा ? इसी तरह बालक की इस समय की मानसिक योग्यताओं के ज्ञान के सहारे उसके आगे के मानसिक विकास के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !

विकास की दिशा का सिध्दांत
इस सिध्दांत के अनुसार, विकास की प्रक्रिया पूर्व निश्चित दिशा में आगे बढ़ती है ! विकास की प्रकिया की यह दिशा व्यक्ति के वंशानुगत एवं वातावरण जन्य कारकों से प्रभावित होती है ! इसके अनुसार बालक सबसे पहले अपने सिर और भुजाओं की गति पर नियंत्रण करना सीखता है और उसके बाद फिर टांगों को ! इसके बाद ही वह अच्छी तरह बिना सहारे के खड़ा होना और चलना सीखता है !

विकास लम्बवत सीधा न होकर वर्तुलाकार होता है
बालक का विकास लम्बवत सीधा न होकर वर्तुलाकार होता है ! वह एक सी गति से सीधा चलकर विकास को प्राप्त नहीं होता, बल्कि बढ़ते हुए पीछे हटकर अपने विकास को परिपक्व और स्थायी बनाते हुए वर्तुलाकार आकृति की तरह आगे बढ़ता है ! किसी एक अवस्था में वह तेजी से आगे बढ़ते हुए उसी गति से आगे नहीं जाता, बल्कि अपनी विकास की प्राप्त वृध्दि और विकास को स्थायी रूप दिया जा सके ! यह सब करने के पश्चात ही वह आगामी वर्षों में फिर कुछ आगे बढ़ने की चेष्टा कर सकता है !

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